सोमवार, 23 दिसंबर 2013

तुम पर कविता लिखना

एक दौर गुजर गया है ..
   एक साथ पढते-पढते 
और अब मैंने बंद कर दी  हैं सारी किताबें 
सोचा है इस बार, 
             मनोविज्ञान नहीं 
बस मन पढ़ लूं तुम्हारा ....
अब तक पढ़े हैं, तुम्हारे लिखे हुए अक्षर ...
इस बार पढ़ लूं ,  जिसे अक्सर लिखते -लिखते रुक गई हो तुम .|
खूब हुई है कहासुनी ... 
  इसबार सुन लूं 'अनकही '...|
ताकि जान सकूं 'ना ' में छुपी 'हाँ' को ,
गुस्से में दबे प्यार को ,
और खुद्दारी में समाई प्यास को ......

क्योंकि, तुम पर कविता लिखना इतना आसान तो नहीं है |

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

'"अजीब ख्वाहिश "

तुम्हारे होने से दुनियाँ खूबसूरत लगती है .
तुम्हारी आवाज़ से तन्हाई गुनगुनाती है |
'चाँद कहीं आसपास ही होता है,...
               जब तुम होती हो .
आसपास ही बिखर जाती है चाँदनी ...
और हाँ ! मैंने समेटकर रख ली है वही चाँदनी,
उसे खर्च करूँगा बड़ी कंजूसी से ......
हर रात को जब अँधेरा ज्यादा होगा और नींद नहीं आयेगी |
तब नहीं करूँगा तुम्हें परेशान  msg या call से ..
नाराजगी नहीं है मगर 
..नहीं चाहता इस मर्ज़ की  दवा ,,,
उस तड़प को जी लेना चाहता हूँ .|
अजीब पागलपन है ना ?...
मगर,    इस बार तुम्हारी यादों को जीना चाहता हूँ | .
गैरमौजूदगी में, तुम्हें जी भर के महसूस कर लेना चाहता हूँ ..|
देखना चाहता हूँ कि - 'मुझमें कितनी गहराई तक उतर गई हो तुम....
इस बार मापना चाहता हूँ वो रिक्तता (खालीपन). जिसे तुम छोड़ जाती हो...
     हर बार,   छुट्टियों में....! 
                                                    - "विनय "