मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

वक़्त कब कहाँ रुका है किसी के लिए...

.

कमबख्त एक पल भी नहीं ठहरता कि,

रुक जाएँ कुछ साँसे

थम जाये नब्ज कुछ लम्हे  लिए

न बहे लहू इन धमनियों में कुछ पल

ठहर जाये आँखों के ख्वाबों का कारवां,   कुछ अरसे के लिए

ख़त्म  जाएँ सवालों के नुकीले नश्तर,    कुछ  लिए

जम जायें अतीत के पन्नों के चलचित्र,  कुछ लम्हों के लिए

  मैं न रहूँ,.... रहकर भी… कुछ वक़्त के लिए 

रविवार, 13 अप्रैल 2014

दाग अच्छे हैं ?

केजरीवाल ने जब दिल्ली के मुख्यमंत्री  पद  से इस्तीफ़ा दिया
तो  बिना किसी अफ़सोस के प्रधानमंत्री की  दौड़ में शामिल हो गये |
और फिर राज्यस्तरीय ज्वलंत रैलियां राष्ट्रस्तरीय परिवर्तनकारी  रोड शो में तब्दील हो गई | विरोधियों के कान खड़े हुए तो कभी हिंदी साहित्य की वर्णमाला  भी न जानने  वाले नेताओं के मुखारबिन्दु  से भी व्यंग्य फूट पड़े | एक राज्य न चला पाने के आरोपी अरविंद केजरीवाल पर देश  कैसे चलाने का पूर्वाभासी तीर छोड़ दिया गया | 'आप' को बच्चा कहा गया मौसमी बयार की  संज्ञा दी गई , और भारतीय जानता पार्टी के प्रधानमंत्री पद  के उम्मीदवार  ने तो केजरीवाल का पतन निश्चित कर दिया | ..



बस यहीं से मामला बिगड गया , अपनी धुन के जिद्दी केजरीवाल ने भी ईंट के जबाब में पत्थर फेंक दिया और वही पत्थर मोदी की  राह में रोड़ा बन गया | दरअसल अपनी फजीहत देखकर केजरीवाल ने घोषणा कर दी कि मोदी जहां से चुनाव लड़ेंगे, वे उनके सामने ही ताल ठोंकेंगे  |
     किसी फ़कीर कि तरह लंगोटी कसकर  तैयार केजरीवाल के पास खोने के लिए कुछ नहीं है मगर मोदी की मेहनत और पूंजी अगर निरर्थक रही तो गुजरात का दिखावटी विकास भी रुक जायेगा | अतः बड़ी जद्दोजहद के बाद नरेन्द्र मोदी को वाराणसी से उम्मीदवार बनाया गया | साफ जाहिर था कि केजरीवाल की ताल में धमक थी | मगर असली किस्सा तो उसके बाद घटा | जब केजरीवाल ने अपने बनारस प्रथम आगमन की तैयारियां की |

अभी केजरीवाल ने ट्रेन पकड़ी भी नहीं थी कि मोदी ने अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूंड लिया | अब वे गुजरात के वड़ोदरा से भी चुनाव लड़ेंगे और वहां उनकी सीट सुरक्षित मानी जा रही है  और ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बनारस से मोदी असुरक्षित है ?

             खैर, केजरीवाल 25 मार्च को अलख सुबह बनारस पहुँच गए, जाते ही बहती गंगा में डुबकी लगा दी. दिन  भर रोड शो प्रस्तावित था और शाम को महारैली.  केजरीवाल रोड शो के दौरान जैसे ही अपने रथ पर चढ़े कि पीछे से फूलों की बौछार सा आभास हुआ, लेकिन फूल इतना चुभते तो नही हैं, केजरीवाल असमंजस में पड़ गए, और जैसे ही पीछे मुड कर हालात का जायजा लेना चाहा कि अचानक एक किसी परिंदे का अंडा उनके मुंह पर अपनी छाप छोड़ गया. बस यही तो चाहते थे 'आप'. उन्होंने उस अंडे के तिलक को नहीं मिटाया बल्कि शाम की रैली में दहाड़ लगा दी कि ''मैंने तो पहले ही अंदेशा जताया था कि ये डरने वाले लोग मुझ पर छुप कर हमला करेंगे''


                                       
 यहीं एक बार फिर मोदी-खेमा मुंह की खाने का भविष्य तय कर गया, केजरीवाल पर जमकर स्याही फेंकी गई, मुमकिन है कई कलमें खाली हो गईं होंगी. वे कलमें जो समाज और देश बदलने की कुव्वत रखती है उसका खून यूँ ही सफ़ेद कमीज पर न्योछावर कर दिया गया. और ये दाग केजरीवाल ने नहीं धोए, और संजो के रख लिए. हो न हो यही दाग अच्छे  साबित हो जाएँ. क्यूंकि जानता की सुहानिभूती समेत ले गए हैं ये दाग, केजरीवाल पर हमला मात्र जनता का रुख केजरीवाल की तरफ मोड देने के लिए काफी है. मसलन वोट करने वाले लोग ये सोच कर तो जायेंगे ही कि जहां सत्ता में आने से पहले एक साफ छवि वाले संघर्षशील आम आदमी पर हमला हो रहा है तो सत्ता में आने के बाद तो ये सेवक आम जन को कैसे बख्शेंगे...