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सोमवार, 31 जुलाई 2017

खूब पढ़े होंगे उपन्यास और कहानियां, जन्मदिन पर पढ़िए कथासम्राट प्रेमचन्द के पत्र और कविताएँ

प्रेमचन्द उन साहित्यकारों में रहे हैं जिनकी लेखनी और जीवन में कोई अंतर नहीं रहा। उन्होंने गांधी जी के कहने पर नौकरी छोड़ दी थी। वे कहते रहे कि मेरा भाग्य दरिद्रों के साथ सम्बद्ध है। मैं साहित्य और स्वराज के लिए कुछ करते रहना चाहता हूँ।
प्रेमचन्द जी के जन्मदिवस पर दो पत्र यहां पढ़ सकते हैं जो उन्होंने बनारसी दास चतुर्वेदी को लिखे थे, उनमें उनका व्यक्तित्व साफ़ झलकता है।

पहला पत्र उन्होंने 3 जुलाई 1930 में लिखा:-

“मेरी आकांक्षाएं कुछ नहीं है। इस समय तो सबसे बड़ी आकांक्षा यही है कि हम स्वराज्य संग्राम में विजयी हों। धन या यश की लालसा मुझे नहीं रही। खानेभर को मिल ही जाता है। मोटर और बंगले की मुझे अभिलाषा नहीं। हाँ, यह जरूर चाहता हूँ कि दो चार उच्चकोटि की पुस्तकें लिखूं, पर उनका उद्देश्य भी स्वराज्य-विजय ही है। मुझे अपने दोनों लड़कों के विषय में कोई बड़ी लालसा नहीं है। यही चाहता हूं कि वह ईमानदार, सच्चे और पक्के इरादे के हों। विलासी, धनी, खुशामदी सन्तान से मुझे घृणा है। मैं शान्ति से बैठना भी नहीं चाहता। साहित्य और स्वदेश के लिए कुछ-न-कुछ करते रहना चाहता हूँ। हाँ, रोटी-दाल और तोला भर घी और मामूली कपड़े सुलभ होते रहें।”

दूसरा पत्र उन्होंने 1 दिसम्बर 1935 में लिखा:-

“जो व्यक्ति धन-सम्पदा में विभोर और मगन हो, उसके महान् पुरुष होने की मै कल्पना भी नहीं कर सकता। जैसे ही मैं किसी आदमी को धनी पाता हूँ, वैसे ही मुझपर उसकी कला और बुद्धिमत्ता की बातों का प्रभाव काफूर हो जाता है। मुझे जान पड़ता है कि इस शख्स ने मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को – उस सामाजिक व्यवस्था को, जो अमीरों द्वारा गरीबों के दोहन पर अवलम्बित है-स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार किसी भी बड़े आदमी का नाम, जो लक्ष्मी का कृपापात्र भी हो, मुझे आकर्षित नहीं करता। बहुत मुमकिन है कि मेरे मन के इन भावों का कारण जीवन में मेरी निजी असफलता ही हो। बैंक में अपने नाम में मोटी रकम जमा देखकर शायद मैं भी वैसा ही होता, जैसे दूसरे हैं -मैं भी प्रलोभन का सामना न कर सकता, लेकिन मुझे प्रसन्नता है कि स्वभाव और किस्मत ने मेरी मदद की है और मेरा भाग्य दरिद्रों के साथ सम्बद्ध है। इससे मुझे आध्यात्मिक सान्त्वना मिलती है।”

मुंशी प्रेम चंद की कविताएं

प्रेमचंद कवितायेँ नहीं लिखते थे, लेकिन उन्होंने अपनी कहानियों में कई बार कविताएँ शामिल की हैं।
यहाँ कुछ उन कविताओं या काव्यांशों को प्रकाशित कर रहे हैं, जिन्हे कथा सम्राट प्रेम चंद की कहानियों में जगह मिली है। यह किसकी रचनाएं हैं यह जानने से कहीं महत्वपूर्ण है कि ये प्रेम चंद की पसंदीदा कविताएं हैं, पसंदीदा मैं इसीलिए कह पा रहा हूँ क्योंकि ये कविताएं आज यहाँ जीवन पा रही हैं, कविताएं ऐसे भी जिंदा रहती हैं । यह सिलसिला चलता रहेगा, आज पढ़िये प्रेम चंद की पसंद में दो कविताएं।
पहली कविता
क्या तुम समझते हो ?
क्या तुम समझते हो मुझे छोड़कर भाग जाओगे ?
भाग सकोगे ?
मैं तुम्हारे गले में हाथ डाल दूँगी,
मैं तुम्हारी कमर में कर-पाश कस लूँगी,
मैं तुम्हारा पाँव पकड़ कर रोक लूँगी,
तब उस पर सिर रख दूँगी,
क्या तुम समझते हो,
मुझे छोड़ कर भाग जाओगे ?
छोड़ सकोगे ?
मैं तुम्हारे अधरों पर अपने कपोल
चिपका दूँगी,
उस प्याले में जो मादक सुधा है-
उसे पीकर तुम मस्त हो जाओगे।
और मेरे पैरों पर सिर रख दोगे।
क्या तुम समझते हो मुझे छोड़ कर भाग जाओगे ?
( यह कविता रसिक संपादक कहानी से है और वहाँ इसकी रचनाकार कामाक्षी हैं )
दूसरी कविता
माया है संसार
माया है संसार सँवलिया, माया है संसार
धर्माधर्म सभी कुछ मिथ्या, यही ज्ञान व्यवहार,
सँवलिया माया है संसार।
गाँजे, भंग को वर्जित करते, है उन पर धिक्कार,
सँवलिया माया है संसार।
( यह पद गुरु मंत्र कहानी से)

रविवार, 9 जुलाई 2017

देख नहीं सकते पर दिखा सकते हैं दुनियां: नेत्रहीन कलाकारों की नाट्य प्रस्तुति देख दांतों तले ऊँगली दबाएंगे आप

निवार की दोपहर झमाझम बारिश के बीच पुणे के तिलक स्मारक मंदिर नाट्यगृह में लोग जुट रहे हैं। 12 बजे तक एक लंबी लाइन हाथों में टिकट लिए नाट्यगृह में कौतूहल के साथ प्रवेश करती है। लोग लगातार आ रहे हैं इसलिए नाट्य प्रस्तुति अपने निर्धारित समय दोपहर 12 बजे की बजाय1 बजे शुरू हो पाती है।

खचाखच भरे हॉल में घोषणा होती है, ‘ 19 नेत्रहीन कलाकार प्रस्तुत करते हैं नाटक ‘मेघदूत’।


…और तालियों की गड़गड़ाहट पर्दे के पीछे तैयार खड़े कलाकारों में आत्मविश्वास भर देती है।
मंच पर अभिनय, संवाद, गायन, नृत्य और दृश्य संयोजन देखकर दर्शक अपनी कुर्सियों से उछल पड़ते हैं। ऐसे कम्पोजिशन कि देखने वाले न बना पाएं।
नाटक ऐसी विधा है जिसमें सारी विधाएँ समाहित होती हैं। अभिनय के साथ साथ गीत-संगीत और नृत्य के द्वारा कहानी कही जाती है। सावी फाउंडेशन के सहयोग से 19 अंध कलाकारों ने महाकवि कालिदास के काव्य नाटक ‘मेघदूत’ का मंचन किया। स्वागत थोराट के निर्देशन में नेत्रहीन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को अभिभूत कर दिया।
नाटक के लेखक और अनुवादक गणेश दिघे प्रस्तुति के दौरान मौजूद रहे। वे कहते हैं कि,
“जब मैंने लिखा था तब मैं इन दृश्यों में नाटक नहीं सोच पाया था जैसे इन कलाकारों ने प्रस्तुत किये हैं। मेरे लिए एकदम नया मेघदूत मेरे सामने मंचित हो रहा था।”
नाटक में नृत्य भी था और तलवारों का युद्ध भी.. बिना देखे एक-दूसरे के साथ इतना बेहतर तालमेल देखते ही बनता है।

नाटक के निर्देशक स्वागत कहते हैं, “हमें नजरिया बदलने की जरूरत है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि नेत्रहीन भी ऐसा कर सकते हैं, मैं तो कहता हूँ वे सबसे सुंदर कर सकते हैं। मैं नेत्रहीन प्रतिभाओं के प्रति समाज का नजरिया बदलना चाहता हूँ। और मैं इन्हें जितना सिखा रहा हूँ उससे कहीं अधिक सीख रहा हूँ। कलाकारों की मेहनत और उत्साह देखकर मुझे ऊर्जा मिलती है।”

पुणे के अंध कलाकारों की नाट्य प्रस्तुतियाँ देखकर आप चौंक जायेंगे। कालिदास का क्लासिक नाटक ‘मेघदूत’ के मंचन की जिम्मेदारी कई बार समर्थ नाट्य संस्थाएं भी नहीं लेतीं लेकिन नेत्रहीन कलाकारों की प्रस्तुति निःशब्द कर देती है। सावी फाउंडेशन की मदद से निर्देशक स्वागत थोराट की अटूट मेहनत से 19 नेत्रहीन कलाकार मंच पर अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करते हैं तो नाटक के नए अर्थ सामने आते हैं।
पुणे की सावी फाउंडेशन ने नाटक का निर्माण और इन कलाकारों को तैयार किया है। इस संस्था को शहर की महिलाएं मिलकर समाज कार्य के लिए चलाती हैं। संस्था की संस्थापक सदस्य रश्मि जी बताती हैं,
“नाटक में भूमिकाएं निभाने वाले कलाकार विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हैं। कोई बैंक में नौकरी करता है तो कोई अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर रहा है। महाराष्ट्र के कई शहरों से इन्हें चुना गया है। 80 दिनों की दिन रात मेहनत का परिणाम है कि इन्हें मंच पर उतारा गया तो शानदार प्रस्तुति सामने आई।”
कलाकारों के लिए भी ये अनुभव सपने पुरे होने से कहीं ऊपर है। पुणे में ही बैंक में काम करने वाले और नाटक में मुख्य भूमिका निभाने वाले गौरव कहते हैं,
“मैं जब भी फिल्मों या नाटकों के बारे में सुनता था तो मन ही मन सोचता था कि काश मैं भी अभिनय करूँ लेकिन लगता था कि आँखें होतीं तो मैं जरूर अभिनेता ही बनता।
अब जबकि मुझे नाटक में मुख्य भूमिका मिली तो मैं उछल पड़ा। मेरे लिए ये सपने से भी ऊपर की बात है।”
कालिदास रचित मेघदूत क्लासिक नाटक है जिसमें नाटक का पात्र यक्ष जिसे एक साल तक अपनी प्रेयसी से दूर पर्वत पर रहने की सजा मिलती है। तब आषाढ़ के पहले दिन वह मेघों के जरिए अपनी प्रेयसी को सन्देश भेजता है। मेघों को रास्ता बताते हुए कालिदास जो लिखते हैं विश्व साहित्य में प्रकृति का ऐसा अनूठा वर्णन कहीं नहीं मिलता।
नाटक में दामिनी की भूमिका निभाने वाली तेजस्विनी भालेकर मेघदूत को महसूसते हुए बताती हैं,
“मुझे घूमने का बहुत शौक है, अपना देश, पहाड़, नदियां, समन्दर… लेकिन देख न पाने के कारण ये सपना ही रह जाता है। मुझे कालिदास के मेघदूत में भूमिका मिली जिसके कारण मैंने नाटक के संवादों और गीतों से पूरा देश घूम लिया। कालिदास ने मेघों से संवाद के जरिए नदियां, पर्वत, और गांवों का ऐसा विवरण किया है कि सब स्पष्ट चित्र बन जाते हैं। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे मेघदूत करने को मिला.”

तेजस्विनी भालेकर
नाटक ऐसी विधा है जो सबको सींचती है। मानव की अनन्त सम्भावनाओं को उजागर करती है, इसमें कलाकार भी और दर्शक भी भावों से भर जाता है।
सावी फाउंडेशन Team with Writer and Director
सावी फाउंडेशन नेत्रहीन दिव्यांगों के लिए ब्रेल लाइब्रेरी से लेकर वोकेशनल ट्रेनिंग के कई कार्यक्रम चलाती है। महिलाओं के सामूहिक प्रयास से एक नई सामाजिक चेतना का रास्ता बन रहा है। पुणे की व्यावसायिक महिलाएं मिलकर सावी फाउंडेशन का कार्य आगे बढ़ा रही हैं। अगर आओ भी इनसे जुड़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर जुड़ सकते हैं।
और अंत में हेलन केलर की कविता की पंक्तियाँ-:
“क्या तुमने अंधेरों के खजाने में घुसकर देखा है
अपने अंधेपन को खोजो
उसमें अनगिनत मोती हैं जीवन के..”

Published at http://hindi.thebetterindia.com/3725/visually-challenged-actors-theatre-pune-meghdut/