पृष्ठ

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

इश्क तो बस इश्क है....


“वो कभी साथ-साथ नहीं बैठे... उन्होंने कभी हाथों में हाथ लेकर कोई लंबी सैर नहीं की.. कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठकर कभी जरूरी बातों के लिए भी वक़्त नहीं निकल पाए.. एक दूसरे से मिलने पर डर और शर्म की हलकी चादर हमेशा दोनों के बीच एक दीवार बनकर खडी रही... कुछ ही फासलों पर रहकर कभी एक दूसरे से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए... करीब से गुजरे तो रोंगटे खड़े हो गए और बडी दूर से जुटाई गयी बोलने की हिम्मत पास आकार सिर्फ हल्की मुस्कुराहट में सिमट गयी...
.....मगर दोनों एक पल के लिए भी एक दूसरे के मन से ओझल नहीं हुए.. हमेशा स्मृतियों में एक स्थाई वजूद लिए मौजूद रहे... गैर-मौजूदगी में एक एहसास बनकर साँसों में घुलते रहे.. आसपास रहकर सुकून भरी खुशबू की तरह महकते रहते... और एक दूसरे की ताकत बनते रहे.. किसी महफ़िल में दो कोनों से आँखों की तिरछी कनखियों से एक दूसरे को चुपके-चुपके निहारते रहे.. जब नज़रें मिलती तो सहम कर झुक जातीं रहीं..!" 


प्रेम और दोस्ती में एक बड़ा फर्क अभिव्यक्ति के मामले में भी होता है. जब हम प्रेम में होते हैं तो जुबां से शब्द नहीं निकलते वहीं दोस्ती में खुद को बढा-चढा कर पेश करने में आगे होते हैं. प्रेम में हम सामने वाले से बिना कहे समझने की आरजू पाले होते हैं. बहुत कुछ कहना नहीं चाहते. सामने वाले को इजाजत देते हैं कि वो हमारा जेहन पढे, हमें महसूस करे. चेहरे की शिकन देखकर परेशानी का अनुमान लगा ले. चुप्पियों को सुनकर हादसों की कहानी जान ले. आँखों को पढकर चाहतें पढ़ ले....
हमारा समाज ही ऐसा है जहां कभी प्रेम में पूर्णता नहीं रही... हमेशा एक अधूरापन कसक बनकर खटकता रहा.. जो सोचा वो पहले तो खुद के डर और शर्म से पर्दों में छुपा रहा फिर कभी घर-परिवार के डर से, कभी समाज के डर से हकीकत की चादर नहीं ओढ़ पाया.. 
वो हजारों अधूरी ख्वाहिशें मन से स्याही की रेखाओं में कागज पर उतरती रहीं.. वही जब किसी ने पढीं तो नज़्म बन गईं..

मगर क्या करें ? ये उम्र ही ऐसी है, जिसमे सपने देखने की अपार शक्ति होती है, कितनी बंदिशों के बाबजूद हजारों ख्वाहिशे पलती रहती हैं हर पल.. बिना ये सोचे कि इन्हें पाना बहुत मुश्किल है.. आँखे सपनों का घर बन जाती हैं.. और फिर प्रेम की ऊर्जा तो सोचने की सारी सीमाएं ही तोड़ देती है.. कल्पनाओं का ऐसा संसार बनता है कि धरती की बजाय आसमां पे आशियाँ होता है.. चाँद-तारे उपहार बन जाते हैं.. और हसीन वादियाँ मुहब्बत की सैर...
 और उन वादियों में बैठकर बरबस फूट पड़ता है---
    "क्षण भर तुम्हें निहारूं 
    अपनी जानी एक एक रेखा पहचानूँ 
  चेहरे की, आँखों की .. अंतर्मन की
और हमारी साझे की अनगिनत स्म्रतिओं की "
मगर यही सब जब वास्तविक दुनियां में नामुमकिन सा होता है.. तो फिर कई बातें जुबां तक आते आते रुक जाती हैं.. अधूरी ख्वाहिशें मन में मसोसे जीते रहते हैं...
मगर बड़ी खूबसूरत बात है कि शायद ये अपूर्णता ही हमे और ज्यादा करीब ले जाती है.. सब कुछ पा लेना और संतुष्ट हो जाना ही जीवन का सार नहीं है.. अतृप्त इच्छाएँ एक नई ऊर्जा का संचार करती हैं और एक आग लगी रहती है चाहत की.. जहां कभी गुलज़ार के गीत एक खूबसूरत दुनियां में ले जाते हैं तो जगजीत सिंह की कोई गज़ल एक मीठी चुभन की तरह जेहन में उतर जाती है.
यही तो वो तड़प है जो प्रेम को अनमोल बना देती है. यही है वो आग का दरिया जिसे पार करने वाला महान हो जाता है... यहीं से उपजती हैं वो हजारों भावनाएं जिन्हें शब्द दे पाना लगभग नामुमकिन होता है.. कसक और तड़प के बीच महसूस की जाने वाली अनुभूतियाँ कभी कागज पर नहीं उतर पायीं... फिर मुहब्बत की कविता का देवता कीट्स भी यही कह पाता है-   
"जो सुना गया वह मधुर था.. जो अनसुना रहा वह और भी ज्यादा मधुर .."



पाने की लालसा और जद्दोजहद मंजिल के सफर को रोचक बना देती है, पा लेना एक विराम है. जिसके बाद वहीं खड़े रहना होता है, ज़िंदगी में स्थिरता आ जाती है. और जीवन एक संतोष भरा बन जाता है, फिर कोई चाहत नहीं.. जेहन में कोई हरारत नहीं रहती..
उसकी तुलना में पाने की चाहत में दौड़ते रहना एक गतिशील क्रिया है जिसमे हर पल कुछ न कुछ नया घटता रहता है.. कभी खोने का डर तो कभी एक झलक पा लेने की खुशी ज़िंदगी में रोमांच बनाये रखती है.. एक पल में सारा जहान अपना लगता है,,, तो दूसरे ही पल सब कुछ मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता नज़र आता है.. मगर फिर भी इस अनुभव को ज़िंदगी भर जीते रहने के लिए गुज़ारिश है-
"इच्छा करने में जो सुख है, सबकुछ पाने में प्राप्त कहाँ,
  मैं तुमसे मांगू, तुम दाने-दाने को तरसाती जाओ.."


तुम पास रहो  न रहो, बस तुम्हारे साथ होने का एहसास मात्र मेरे भीतर के तुम्हारे चेहरे जैसी एक तस्वीर बनाये रखता है.. लगता रहता है मेरे वजूद में एक ऊर्जा की लौ जल रही है.. हर पल पास न होते हुए भी मेरे अंतस में एक साये की  तरह घुली रहती हो.…मगर, बहुत  कुछ शेष है जो अभी घुल नहीं पाया है हमारे बीच.…… 

"पाने की तड़प जिंदा रखेगी तुम्हें,
                           मेरे भीतर..
हर पल ख्याल रखेगा तुम्हारा,,
                            तुम्हें खोने का डर..."

2 टिप्‍पणियां: