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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

आतंकवाद के खिलाफ सराहनीय पहल

मुस्लिम संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिए-ए-मुशाविरत ने पहल की है की वे मस्जिदों, मदरसों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में आइएस के खिलाफ लोगों को आगाह करेंगे.
ऐसी पहल सराहनीय हैं क्योंकि धर्म के नाम पर इंसानियत का खात्मा किसी धर्म की किताब में नहीं है, मगर कुछ तथाकथित संगठन इसे दुष्प्रचारित कर इतना कट्टर बना देते हैं, कि धर्म ही लोगों की जान का प्यासा बन जाता है.
असल में ऐसी पहलें इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि यदि कोई अन्य धर्म का संगठन या व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे धर्म विरोधी करार दिया जाता है. अब जबकि उसी धर्म के ही शिक्षक इस्लाम का असल मतलब बतायेंगे तो उस धर्म के मानने वाले लोग अपने धर्मगुरुओं पर भरोसा भी करेंगे और समर्थन भी मिलेगा.नई पीढ़ी का भटकाव कम होगा और ऐसे कट्टर संगठनों की कमर टूटेगी.
कुछ दिनों पहले प्रमुख मस्जिदों के मौलवियों ने भी आइएस के खिलाफ ख़त जारी कर इसे इस्लाम के खिलाफ बताया था. ये धर्मगुरुओं की सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि अगर कोई संगठन धर्म को खतरनाक बना रहा है तो उसके खिलाफ आगे आकर अपनी आवाज बुलंद करें. क्योंकि समाज ने धर्म की रक्षा के साथ-साथ मानवता की भी अहम जिम्मेदारी इन्हें सौंपी है. धर्म के ऐसे गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए जब धर्म रक्षक आगे बढ़कर आएगे, तो उनकी बात भी सुनी जाएगी और लोग दुष्प्रचार का विरोध करने की हिम्मत भी जुटा पाएंगे.
आतंकवाद की जड़ें धर्म में दबी हैं, तो धार्मिक स्तर पर ही उन्हें उखाड़ा जा सकता है. आतंकवाद धर्म की गलत परिभाषाओं से उपजी समस्या है. अगर उन्हीं परिभाषाओं को सही रूप में पढाया जाए तो कम से कम आने वाली पीढ़ी में जहर की जगह सौहार्द्य भाव की उम्मीदें की जा सकती हैं. 
आई एस की गर्त में जा चुके लोगों के सुधरने की गुंजाइस से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नई पीढ़ी को इसमें भर्ती होने से रोकना है. पूरी दुनियां में जाल फैला चुका यह खतरनाक संगठन युवाओं को धर्म के नाम पर इंटरनेट के जरिये फंसा रहा है. असल में युवाओं के फंसने की वजह ये भी है कि उन्हें जो ऐसे संगठनों द्वारा बताया जा रहा है, उसे वे इसलिए भी सही मान रहे हैं क्योंकि दूसरी तरफ से सब चुप हैं. इसके विरोध में जो हैं भी, वे दूसरे धर्म के हैं. पिछले दिनों पुलिस ने एयरपोर्ट से जिस युवक को गिरफ्तार किया, उसे भावनात्मक रूप से जीवन झोंकने के लिए उकसाया गया था. उस जैसे हजारों युवा भडकाव में बहे जा रहे हैं. जिन्हें बचाने की जिम्मेदारी धार्मिक समाज की है. 
असल में धर्म के नाम पर ऐसे आतंकवादी संगठन जो खतरनाक खेल खेलते हैं, उसके बदले में उस धर्म के मासूम लोग निशाना बनते हैं. पूरी दुनियां में मुस्लिमों को जिस तरह का बर्ताव झेलना पड़ता है, उसका गुनाह उनमे से शायद किसी ने नहीं किया होता, मगर उस धर्म के नाम पर जो आतंकवादी संगठन करते हैं उसकी चपेट में बेगुनाह लोग आतंकवादी की तरह देखे जाते हैं.
यह लेख दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित हो चुका है 



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