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रविवार, 13 अक्टूबर 2013

‘‘असत्य पर सत्य की विजय का पर्व – विजयादशमी’’



 
भारत एक समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं का देश है. और उन्हीं परम्पराओं और संस्कृति के निर्वहन के लिए यहाँ अनेक त्यौहार मनाये जाते हैं. वैसे तो इन त्योहारों के मनाये जाने का सीधा सम्बन्ध खुशियाँ मनाने से है, मगर साथ ही साथ प्रत्येक त्यौहार अपने साथ कुछ सीख और सन्देश  लिए आता है, जिसमे वर्त्तमान समय में उसके मनाये जाने की सार्थकता निहित होती है.
                   इन्हीं त्योहारों में से एक महापर्व आज हम मना रहे है- विजयादशमी का पर्व यानी  दशहरा. जैसा कि सब जानते हैं कि त्रेता युग में दशमी के दिन भगवान श्री राम ने पापी रावण का वध कर इस पृथ्वी से पाप का नाश किया था. और अच्छाई कि बुराई पर और असत्य पर सत्य कि विजय हुई, तब से यह पर्व मनाया जाता है. आज इस पर्व के मनाये जाने की सार्थकता पर गौर करने की आवश्यकता है. आज असत्य खान है और उस पर सत्य की कैसे विजय हो, यही इस पर्व को मनाये जाने का उद्देश्य होगा. तो आइये गौर करते हैं -
रावण एक वेदविद ब्राह्मण था. ज्ञानी और शक्तिशाली था , फिर भी वह राम के हाथों मारा गया, क्योंकि उसने अपने ज्ञान और शक्ति का दुरूपयोग किया . रावण भगवान शिव का परम भक्त था, उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उसे अपार शक्ति और अमर रहने का वरदान दिया था, मगर उसने अपनी भक्ति को स्वार्थ हित में प्रयोग किया .
रावण ने सबसे बड़ा अपराध यह किया कि उसने सीता का हरण किया था. सीता को अपने षणयंत्र में फंसाकर अपने साथ ले गया और कैद कर लिया. रावण ने एक स्त्री के साथ धोखा कर उसकी पवित्रता पर लांछन लगाने कि कोशिश की. जिसके दण्डस्वरूप भगवान श्री राम ने उसका वध किया
                 आज हर जगह स्त्रियों के साथ क्या हो रहा है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है. रावण से भी खतरनाक रावण पैदा हो रहे है.रावण ने तो सीता का अपहरण किया था और उसे महल में कैद रखा था, मगर आज के रावण स्त्रियों से किस हद तक गिरकर नीच हरकतें करते हैं, हम रोज ही हर अखबार की हेडलाइन में न चाहते हुए भी पढ़ लेते हैं. हर गली-चौराहे पर स्त्रियां खुद को असुरक्षित समझती हैं. ऐसे में इस पर्व की महत्ता आज के सन्दर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. हमें याद करना होगा कि रावण, जिसने एक स्त्री को गलत इरादे से छूने की कोशिश की थी, उसका अंत भगवान श्री राम ने इसी दिन किया था.
मगर आज हमें किसी व्यक्ति का वध करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रावण होने का मतलब कोई व्यक्ति रावण नहीं है, बल्कि उसके विचार और भाव रावण हैं, उसकी सोच में रावण है,उसके नजरिये में रावण है. वह मानसिकता जो दूसरे की खुशी और तरक्की को देखकर जलन से भर जाती है, वहाँ रावण है, जो कहता है कि उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से ज्यादा सफ़ेद क्यों है. वह नजरिया रावण है जिसमें हर स्त्री भोग्य वस्तु समझी जाती है. जिसमे स्त्रियों को सम्मान और समानता की  दृष्टि  से नहीं देखा जाता है. उनकी भावनाओं में रावण है जो कुछ पैसों के लिए अपने देश और समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य भूल जाते हैं. उनके ज्ञान में रावण है जो पैसो कि खातिर अपने पद और प्रतिष्ठा का दुरूपयोग करते हैं. और वह असत्य रावण है, जिससे किसी से झूठ बोलकर अपना काम निकला जाता है. वे सोची समझी साजिशें जिनके तहत किसी मासूम को फंसाया जाता है. अब आप ही सोचिये इतने व्यक्ति अच्छी खासी संख्या में हैं. हर व्यक्ति में कहीं न कहीं रावण छुपा है.
      अतः किसी व्यक्ति को मार देने से रावण नहीं मर जायेगा बल्कि उसके बुरे विचारों को मारने कि आवश्यकता है. उसकी हीन भावना तथा संकीर्ण मानसिकता का सही ढंग से उपचार करने की  आवश्यकता है. व्यक्ति के नजरिये को बदलना होगा और मनोभाव में सदाचार की नैतिकताओं का प्रवाह करना होगा.
   ...........बेशक यह कहने जितना आसान नहीं है, मगर इतना जान लीजिए कि रावण का अंत निश्चित है आज नहीं तो कल....क्योंकि बुराई पर अच्छाई कि जीत तय है. मगर यह आज होगा तो बेहतर होगा क्योंकि रावण जब तक आपके भीतर जिंदा रहेगा, तब तक आपको अंदर से खोखला करता रहेगा. आपको और ज्यादा हीन और संकीर्ण बनाता रहेगा. आज बुराई पर अच्छाई की और असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है. आज कोशिश करिये और अपने भीतर के रावण को पहचानिये और कर दीजिए उसका वध.
रावण अपराधी होकर भी स्वंय को कभी अपराधी नहीं मानता था. उसके भीतर अपराध-बोध नहीं था, इसीलिए उसके भीतर सुधर कि प्रक्रिया संभव ही नहीं थी. अतः रावण अंत तक रावण ही बना रहा और इसी रूप में उसने जीवन के अंत को प्राप्त किया. मगर आप समय रहते अपने भीतर के रावण को इस दशहरा के पावन पर्व पर दहन कर दीजिए....और मनाइए असत्य पर सत्य कि विजय का पर्व- विजयादशमी .

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