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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

'"अजीब ख्वाहिश "

तुम्हारे होने से दुनियाँ खूबसूरत लगती है .
तुम्हारी आवाज़ से तन्हाई गुनगुनाती है |
'चाँद कहीं आसपास ही होता है,...
               जब तुम होती हो .
आसपास ही बिखर जाती है चाँदनी ...
और हाँ ! मैंने समेटकर रख ली है वही चाँदनी,
उसे खर्च करूँगा बड़ी कंजूसी से ......
हर रात को जब अँधेरा ज्यादा होगा और नींद नहीं आयेगी |
तब नहीं करूँगा तुम्हें परेशान  msg या call से ..
नाराजगी नहीं है मगर 
..नहीं चाहता इस मर्ज़ की  दवा ,,,
उस तड़प को जी लेना चाहता हूँ .|
अजीब पागलपन है ना ?...
मगर,    इस बार तुम्हारी यादों को जीना चाहता हूँ | .
गैरमौजूदगी में, तुम्हें जी भर के महसूस कर लेना चाहता हूँ ..|
देखना चाहता हूँ कि - 'मुझमें कितनी गहराई तक उतर गई हो तुम....
इस बार मापना चाहता हूँ वो रिक्तता (खालीपन). जिसे तुम छोड़ जाती हो...
     हर बार,   छुट्टियों में....! 
                                                    - "विनय "

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