बुधवार, 11 सितंबर 2013

उसने कभी भीख नहीं मांगी,
उसने तो हमेशा रोका है उस भूखे पेट वाली स्त्री को..
जो बढा देती है कटोरा, हर आते-जाते के सामने..
    पेट के लिए
 

ये जानते हुए भी कि कोई अनायास भी नहीं देखेगा..
जानबूझ कर बना देंगे उसे होते हुए भी न होने जैसा..
वो बीच चौराहे पर खडी नहीं दिखेगी किसी को भी .







और कभी-कभी वो कामयाब हो जाती  है खुद को रोकने में..
और धोती के एक पल्लू से पसीना पोंछने के बहाने छुपा लेती है अपना चेहरा ..
...............मगर, जब फिर पेट में कुछ दौड़ता है तो बैचेन हो जाती है..
.....लेकिन जैसे ही एक मासूम आवाज़ उसके कानों को चीरती है,
तो अचानक वो पेट वाली स्त्री छुडाकर खुद से हाथ,
  फैला देती है किसी के आगे.!

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