वक़्त कब कहाँ रुका है किसी के लिए...
.
कमबख्त एक पल भी नहीं ठहरता कि,
रुक जाएँ कुछ साँसे
थम जाये नब्ज कुछ लम्हे लिए
न बहे लहू इन धमनियों में कुछ पल
ठहर जाये आँखों के ख्वाबों का कारवां, कुछ अरसे के लिए
ख़त्म जाएँ सवालों के नुकीले नश्तर, कुछ लिए
जम जायें अतीत के पन्नों के चलचित्र, कुछ लम्हों के लिए
मैं न रहूँ,.... रहकर भी… कुछ वक़्त के लिए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें