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शुक्रवार, 4 मार्च 2016

आतंरिक सुरक्षा की खुलती कलई

इशरत जहाँ मामले में बारह साल के बाद भी ट्रायल शुरू नहीं हो पाया. डेविड हेडली के बयान के बाद पी चिदंबरम की हेराफेरी से इस मामले एक के बाद एक नया मोड आता जा रहा है. अफसरों से लेकर मंत्रियों तक के शामिल होने के खुलासे हो रहे हैं. मामले को इतना पेचीदा बना दिया गया है कि समझना मुश्किल है कि एनकाउंटर फर्जी था या इशरत आतंकवादियों के साथ मिली थी. डेविड हेडली से लेकर पूर्व अधिकारिओं के बयानों में इतने पेंच हैं कि साफ साफ कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा. सच चाहे जो भी हो लेकिन यह मामला एक बेहतर उदहारण बनता जा रहा है यह समझने का कि कैसे देश में पुलिस से लेकर जांच एजेंसिया काम करती हैं. और उनमे सरकारों का हस्तक्षेप भी किस हद तक हो सकता है. सरकारें आरोप-प्रत्यारोप की अपनी राजनीति खेल रही हैं. इस मामले में शामिल लोग अपने-अपने सच सामने ला रहे हैं. देश की सुरक्षा प्रणाली की कलई खुलती जा रही है. इन संस्थाओं में काम कर रहे अधिकारिओं की मानसिकता उभर रही है. इशरत जहाँ को आतंकवादी बताकर मरने वालों की अपनी चालें भी दण्डित होनी चाहिए, इनके षण्यंत्र भी सजा के लिए कम जिम्मेदार नहीं है. न्यायालय को हस्तक्षेप कर मामले में दूध का दूध और पानी का पानी करवा लेना चाहिए. 
बहरहाल मामले में न्याय मिलने की उम्मीद तो छोडिए सच सामने आने की सम्भावना भी कम ही दिख रही है. लेकिन इतना तो तय है कि देश की आतंरिक सुरक्षा तंत्र का उलझा हुआ सच उजागर हो रहा है.
 

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