गुरुवार, 30 जनवरी 2014

मौनी अमावस्या पर लाखो ने लगाई संगम में डुबकी ..

संगम तट से.....         
मकर संक्रांति पर्व से शुरू हुए माघ मेले में आज महापर्व मौनी अमावस्या का महा-स्नान है. देश-विदेश से लाखों लोग संगम की ओर आवागमन कर रहे हैं. प्रशासन के पूर्वानुमान के अनुसार मौनी अमावस्या के पावन पर्व पर अस्सी लाख श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाएंगे. विशाल मेला क्षेत्र श्रद्धालुओं से ठसाठस भरा नज़र आ रहा है. लाखों आ रहे हैं तो हजारों अपने-अपने घरों को वापस लौट रहे हैं. इन्हीं महा-स्नान पर्वों पर संगम दुनियां का सबसे ज्यादा जनसँख्या वाला स्थान बन जाता है. जहां विभिन्न देशों, प्रदेशों, क्षेत्रों, गांवों और कस्बों से लोग आकर एक साथ संगम किनारे एकत्रित होते हैं. जहां हजारों संस्कृतियाँ और सभ्यताएं एक साथ संगम के जल में डुबकी लगती हैं. और हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लाखों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ गाते-बजाते, खाते-पीते, नहाते-धोते हैं. सचमुच ये दुनियां का ऐसा एकमात्र अनोखा स्थान है जहां मानवता का महा-संगम होता है.


इतने बड़े मेले का ‘क्राउड मेनेजमेंट’ भी प्रशासन के पसीने छुटा देता है. मेले के सफल आयोजन के लिए सच में मेला प्रशासन की व्यवस्था काबिले तारीफ़ है. और इसीलिये संगम पर दुनियां का सबसे बड़ा ‘क्राउड मेनेजमेंट’ दुनियां के लिए एक मिसाल बन जाता है. आज भी मेला प्रशासन मुस्तैद है. लोगों के मेले में प्रवेश से लेकर भ्रमण, स्नान तथा ठहरने की समुचित व्यवस्था करने के साथ-साथ उनके मेला क्षेत्र छोड़कर सुरक्षित अपने-अपने गंतव्य को रवाना होने तक सारी व्यवस्था का जिम्मा मेला प्रशासन का ही है. मसलन अगर आप मेला क्षेत्र में हैं तो आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी मेला प्रशासन की है. और इस जिम्मेदारी को मेला प्रशासन ने जिस ढंग से निभाया है- अपने आप में एक मिसाल है.! 



माघ मेले में शांति बनाये रखने और हर स्थति पर तत्काल नियंत्रण पाने हेतु मेला क्षेत्र को तीन-जोन तथा पांच-सेक्टर में विभाजित किया गया है. प्रत्येक सेक्टर में अलग-अलग कई रैंक के पदाधिकारिओं की नियुक्ति की गयी है, जो हर समय मेला-प्रभारी मुख्यालय से संपर्क में रहते हैं. कोई भी अप्रिय घटना होने पर मुख्यालय सभी सेक्टरों को अलर्ट जारी कर देता है. प्रभारी मुख्यालय से ही मेला क्षेत्र में आये हुए श्रद्धालुओं को दिशानिर्देश जारी किये जाते है जो पूरे मेला क्षेत्र में लगे लाउड स्पीकरों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचते हैं.


कड़ी सुरक्षा व्यवस्था–

इतनी भारी संख्या में मौजूद भीड़ की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं. ए.टी.एस. की तीन टीमें, दो कंपनी आर.ए.एफ. तथा नौ कंपनी पी.ए.सी, पूरे मेला क्षेत्र में चप्पे-चप्पे पर कड़ी नज़र रखेंगे. वहीं जल पुलिस के 37 गोताखोर स्नान घाटों पर सुरक्षित स्नान हेतु तैनात किये गए हैं. विशाल मेला क्षेत्र में 1287 पुलिस कांस्टेबल, 190 फायर पुलिस के जवान, रेडियो पुलिस के 115 जवानों के साथ ही महिला पुलिस की वीरांगनाएं भी लगातार मुस्तैद रहेंगी. 


 मौनी अमावस्या पर स्नानार्थियों की भारी संख्या को ध्यान में रखते हुए मेला प्रशासन ने १२ स्नान घाट तैयार किये हैं. जिससे आने वाले श्रद्धालुओं को संगम में डुबकी लगाने में विलम्ब तथा भीडभाड जैसी किसी परेशानी का सामना न करना पड़े. घाटों पर बेरीकेटिंग कर स्नान के लिए एक सीमा रेखा बना दी गई है जिससे स्नान के दौरान कोई डूबने न पाए. इसके साथ ही स्नान घाटों के आसपास अस्थाई चेंजिंग रूम भी बनाये गए हैं. जिससे स्नान के बाद महिलाओं को खासी दिक्कतों का सामना न करना पड़े. स्नान घाटों के किनारे बालू अधिक होने के कारण  भारी मात्रा में पुआल बिछा दी गई है.  


मेले में आने वाले भक्तों को कड़ी ठण्ड से बचाव के लिए मेला क्षेत्र में ४२५ टेंट के अस्थाई रैन बसेरों की स्थापना की गई है. जिनमें गर्म कपड़ों के साथ ठहरने की समुचित व्यवस्था की गई है. और साथ ही मेला क्षेत्र में मुख्य चौराहों तथा भीड़ वाले स्थानों पर अलाव जलाये जा रहे हैं. 
किसी भी आपातकालीन हालात से निपटने के लिए भी प्रशासन ने कमर कस ली है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए मेले में २६ एम्बुलेंस २४ घंटे लोगों की सेवा में तत्पर हैं, वहीं २२ चिकित्सालय मेला क्षेत्र में ही स्थापित किये गए है, जिनमे प्राथमिक चिकित्सालयों के साथ ही आयुर्वेद और होम्योपेथिक चिकित्सालय भी शामिल हैं.... 

......तो आप भी पधारिये संगम तट पर. और पावन गंगा-यमुना-सरस्वती के जल में डुबकी लगाकर खुद को पवित्र करिये. और साथ ही इस मेले में विविधताओं के संगम के अनूठे दृश्यों से रूबरू होइए और मेरा यकीन मानिये आप भी डूब जायेंगे इस भक्ति के संगम में- तन से,,, मन से ... धन से ..! 
पधारो संगम तीर..............

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गुरुवार, 23 जनवरी 2014

हर शाम सुरों का संगम



जहाँ सुर सात नहीं, सात हजार से लगते हैं

जहां मधुर ध्वनियों का संगम एक ऐसा संगीत आपके कानों में पिरोता है कि रोम-रोम खिल उठता है, एक सुकून, शांति में मन का पंछी अनायास ही गुनगुनाने लगता है. जहां हजारों भिन्न-भिन्न गीत मिलकर एक नया संगीत बनाते हैं. संगीत का ऐसा संगम दुनियां में और कहीं नहीं मिल सकता है. अनगिनत ध्वनिओं से बना साज़ हमारे मन को छू जाता है,. ऐसा ही एक शाम का सफर माघ मेला में संगम पर ये बता गया कि यहाँ संगम सिर्फ नदियों का नहीं है बल्कि इस जगत की संस्क्रतिओं, परम्पराओं के साथ ही संगीत का भी होता है.

अगर तड़क-भड़क गाने-बजाने से ऊब गये हों, तो गुजारिए एक शाम संगम तट पर, जहाँ मंद-मंद स्वर हवा में घुल कर बहते हैं. एक ऐसा संगीत जो ह्रदय में समाकर धडकनों से गुफ्तगू करता है. रोजमर्रा की भागदौड और शोर-शराबे से घायल कान की परतों पर मरहम लगाता है संगीत यहाँ. कहीं से बांसुरी की सुरीली धुन तो कहीं खनकता इकतारा, सितार की झनझनाती डोर और किसी भजन की पंक्तियाँ, जब एक साथ घुलते हैं तो जैसे कानों में रस घोल देते हैं, बस झूमने को मन करता है.

माघ मेले में मेला प्रशासन की ओर से पूरे मेला क्षेत्र में लाउडस्पीकर लगाये गए हैं, जिनका प्रयोग दिनभर तो खोया-पाया उद्घोषणा के लिए होता है. मगर शाम होते ही शुरू होता है मधुर भक्ति संगीत. साथ ही मेले में लगे शिविरों के अपने-अपने स्पीकर हैं. इन सैकड़ों शिविरों का भिन्न-भिन्न संगीत जब पूरे मेले के संगीत में घुलता है तो फिर संगीत ‘सारेगामा’ के बंधनों से मुक्त होकर स्वछन्द खिलखिलाता है.
माघ-मेले में प्रवेश करते ही आप के साथ-साथ सफर करता है एक सुरीला संगीत. जिसकी आहट भी नहीं होती आपको. आप चलते रहिये, संगीत धुन बदल-बदल कर आपके साथ-साथ  चलता रहेगा. इस संगीत की ये खासियत है कि न तो आपका ध्यान खींचेगा और न हीं आपको अकेला होने देगा.

जहां लाउडस्पीकर अपने नाम के अर्थ बदल देते हैं, उनकी आवाजें कानों से टकराती नहीं हैं बल्कि न जाने कब कानों से अंतःकरण तक उतर जाती हैं. और ये अद्भुत ही है कि जहां हजारों लाउडस्पीकर लगे हैं और शोर नहीं है. मेला प्रशासन के सख्त निर्देशानुसार लाउडस्पीकर एक निश्चित ध्वनि तीव्रता में ही बजाये जा सकते हैं.
किसी शिविर से ओउम के उच्चारण की ध्वनि, तो किसी पंडाल से सामूहिक वन्दना, तो कहीं से लोक संगीत की धुन, और कहीं आरती की जय-जयकार, मन के तारों को झनझना जाती है.
हर पंडाल अपने में विविधता समोए हुए है, हर शिविर से अपनी एक अनोखी धुन गूंजती है. कहीं प्रवचन में डूबे भक्त, तो कहीं भजनों पर तालियों का साज देते श्रद्धालु... कहीं आलाप में सुरों से खेलता गायक तो कहीं उँगलियों से सितार को छेड़ता वादक. अपनी सुध खोकर नाचते-गाते-झूमते स्त्री-पुरुष.... इस सफर में मन करता है बस यहीं ठहर जाएँ.... फिर आगे बढ़े तो सोचा यहीं.... हर पंडाल के दरवाजे पर कदम ठिठक से जाते हैं. और ऐसे ही करते-करते न जाने कब संगम पहुँच जाते हैं.

दुनियां में इतनी विविधताओं का संगम सिर्फ यहीं होता है, और हजारों सुर एक साथ मिल कर बनाते हैं- एक नया सुर. एक नया साज, और एक नयी धुन गुनगुनाती है. और जब ये सारा संगीत एक धागे में मोतिओं की तरह पिरोया जाता है तो स्वर्ग संगम पर नज़र आता है.

तो आइये चलें ऊब से सुकून की ओर... शोर शराबे से मधुरता की ओर... आओ चलें संगम की ओर .!

शनिवार, 18 जनवरी 2014

इश्क में कुछ यूँ हुआ...

                                                             -विनय'

‘इश्क में जान हथेली पर लिए फिरते हैं’, यकीनन, यहाँ मरना जैसे  जीने से ज्यादा आसान होता है. पद, नाम, दौलत और शौहरत की यहाँ कोई कीमत नहीं होती, इश्क में कोई खुलकर बदनाम होता है तो किसी को पद और प्रतिष्ठा का भी ख्याल नहीं रहता. इसकी मिसाल हमे समय-समय पर मिलती रहती है, गुरुवार को  ही खबर पढ़ी थी कि केन्द्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री शशि थरूर अपने नए अफेयर को लेकर दो दिन से ट्विटर पर कंट्रोवर्सी में हैं. उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर ने पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार पर अपने पति पर डोरे डालने का आरोप लगाते हुए खुलासा किया था कि कथित पाकिस्तानी जर्नलिस्ट ने शशि का अकाउंट हैक करके लगातार एक के बाद एक रिझाने वाले ट्वीट भेजे हैं. सुनंदा ने मेहर तरार को जमकर लताड़ा और आई एस आई का एजेंट तक कह दिया. मेहर पर गुस्से के बाद सुनंदा शशि थरूर से सार्वजनिक रूप से गिडगिडाई, जिसमे दोनों के बीच आये ‘तीसरे’ की चुभन साफ़ नज़र आयी. सुनंदा ने ट्वीट किया था -“प्लीज शशि, मैं आपके पैर पड़ती हूँ, आपसे भीख मांगती हूँ, मुझे अपनी ज़िंदगी से मत निकालिए. मैं आपसे प्यार करती हूँ.” 
शुक्रवार को सुनंदा पुष्कर दिल्ली के एक पांच सितारा होटल लीला में मृत पाई गयी. आघात सा लगा. यकीन ही नहीं हुआ. सुनंदा पुष्कर को जितने लोग जानते हैं वह मानते हैं कि सुनंदा बेहद जिंदादिल औरत थीं और वह आत्महत्या जैसा बुजदिली से भरा कदम नहीं उठा सकती. ज़िंदगी में बहुत दंश झेलने के बाद जैसे ज़िंदगी से हंसकर कह ही दिया,- ''बहुत थक गई होगी ना! तो ठहर जा ''  

इस मामले को देखने के बाद बरबस ही हमारी स्मृतिओं में कुछ और खूबसूरत चेहरे घूमने लगते हैं, जिनकी मासूमियत को बेबफाई ने ऐसा रौंदा कि उन्हें इश्क करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पडी. इश्क में जान की बाजी हारने वालों की एक लंबी फेहरिश्त है हमारे पास, जिन्होंने या तो खुद ही अपना वजूद मिटा लिया या फिर उन्हें दूसरे के हाथों अपनी जीवन लीला से विदा होना पड़ा. 

पिछले साल २५ वर्षीय बॉलीवुड अदाकारा जिया खान ने 3 जून 2013 को देर रात बांद्रा में अपने घर पर फांसी लगाकर मौत को गले लगा लिया. जिया खान की मौत पर बॉलीवुड भी सन्न रह गया. जिया खान की आत्महत्या का सुसाइड नोट उनकी मां राबिया खान ने मीडिया के लिए जारी किया जिसमे मां का कहना है कि अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली की बेरुखी ने जिया को तोड़ दिया और इसी वजह से जिया ने आत्महत्या जैसा कदम उठायाजिया ने खुदकुशी से पहले लिखे अपने आखिरी खत में किसी का नाम तो नहीं लिया था लेकिन इस पूरे खत में उन्होंने जगह जगह धोखा देने और फायदा उठाने का आरोप लगाया है.

०४ अगस्त २०१२ को पूर्व एयरहोस्टेस गीतिका शर्मा अपने कमरे में फंखे पर लटकी मिली. एमएलडीआर एयरलाइंस के मालिक और हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा ने नौकरी देकर गीतिका का भरपूर शारीरिक शोषण किया. गीतिका के गोपाल कांडा से अंतरंग संबंध थे इसलिए वह शादी करना चाहती थी, लेकिन कांडा शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था, तंग आकर गीतिका ने अपने कमरे के पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली. कोर्ट ने एयर होस्टेस गीतिका शर्मा सुसाइड केस में आरोपी गोपाल कांडा और उसकी सहयोगी अरुणा चड्ढा के खिलाफ आरोप तय कर दिये. गोपाल कांडा को गिरफ्तार किया गया. गीतिका के सुसाइड के ठीक 6 महीने बाद ठीक उसी घर में उसी कमरे में उसी पंखे पर गीतिका की मां झूल रही थी. कहा जाता है कि इस मौत के पीछे भी गोपाल कांडा का ही हाथ था.


चाँद और फिज़ा , कहानी किसी सुपरहिट फिल्म से कहीं ज्यादा सुपरहिट थी.
हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन और पूर्व एडवोकेट जनरल अनुराधा बाली इश्क में ऐसे डूबे कि पद और नाम के कोई मायने ही नहीं रहे. अनुराधा बाली ने अपना नाम बदलकर फ़िज़ा कर लिया था और चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्‍मद से 2008 में इस्लाम धर्म अपनाकर शादी कर ली थी. भरी दबाब और विवादों के बीच दोनों जुलाई 2009 में अलग हो गए. जुलाई 2009 में चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद ने फिर से धर्म परिवर्तन कर अपनी प्रेमिका के पास न लौटने की कसम खायी. फिज़ा ने लाख कोशिशें कीं लेकिन सिवाय बदनामी के कुछ हासिल नहीं हुआ, फ़िज़ा डिप्रेशन में अकेली रहने लगीं, और ६ अगस्त 2012 को फिजा का 3-4 दिन पुराना शव सड़ी-गली हालत में मोहाली स्थित उनके आवास से मिला...

युवा कवयित्री मधुमिता शुक्ला ने अपनी कलम एक ऐसी प्रेम की स्याही में डुबोई  कि वो उनके लिए ही ज़हर बन गयी. मधुमिता की मई 2003 में उसके घर पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पोस्टमार्टम हुआ तो चौंकाने वाली खबर सामने आई, कि  मधुमिता गर्भवती थी। शक की सुई उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की ओर गई। तो धीरे-धीरे मामला साफ़ हो गया. हत्या के पीछे की वजह यह बताई गई कि मधुमिता अमरमणि से गर्भवती हो गई थी। फिलहाल अमरमणि जेल में हैं।

उत्तर प्रदेश के एक और तत्कालीन मंत्री आनंद सेन की जिंदगी में भी एक लड़की मिटने आई- शशि। शशि क़ानून की पढाई कर रही थी, और अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए आनंद सेन के करीब आई। शशि विधायक बनाना चाहती थी। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईंआनंद सेन के शशि से प्रेम संबंध थे और उन्होंने शशि से शादी का वादा भी किया था लेकिन 22 अक्टूबर 2007 को शशि गायब हुई। लंबी छानबीन और धड़पकड़ के बाद पता चला कि वह इस दुनिया से जा चुकी है। उसकी हत्या हो गई है. बाद में आनंद सेन तब मायावती सरकार में मंत्री थे। उन्होंने इस केस को बहुत दबाने की कोशिश की लेकिन मीडिया के शोर से ये केस कोर्ट तक पहुंचा. फैजाबाद जिला न्यायलय ने आनंद सेन समेत तीन को उम्रकैद की सजा सुनाई, मगर २०१३ में इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने बारी कर दिया.

 आरटीआई एक्टीविस्ट शेहला मसूद की 16 अगस्त 2011 को भोपाल के कोह-ए-फिजा इलाके में उस वक्त गोली मार कर हत्या कर दी गई थी जब वह अपने घर के सामने कार में बैठी. हत्या बेहद आम लग रही थी लेकिन जब कहानी की परतें खुलीं तो सब चकित रह गए. इस मामले में भोपाल की इंटीरियर डिजाइनर जाहिदा परवेज को गिरफ्तार किया गया, और उसने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया. मामला प्रेम त्रिकोण का निकला, जाहिदा ने शेहला की हत्या के पीछे अपने पति से उसके अवैध संबंध को वजह बताया. शेहला और जाहिदा मित्र थीं. दोनों की दोस्ती के बीच में ही किसी तरह शेहला के संबंध जाहिदा के पति से बन गए. पति को खोने के डर से जाहिदा ने शेहला को मरवा डाला...

       और भी अनगिनत कहानियां हैं, जिनमे इश्क की भट्टी में खुद को झोंक कर इस दुनियां से रुखसत होने का सिलसिला चला आ रहा है, मगर इन चर्चित प्रकरणों को लेने का मेरा अर्थ यही था और सवाल भी कि इस भट्टी में आखिर सुनंदा, फिज़ा, जिया, और मधुमिता ही क्यों झोंक दी जाती हैं? क्यों कोई चाँद, सूरज या गोपाल नहीं? स्त्री की मासूमियत और नाजुक भावनाओं के खिलाड़ी दगाबाजों को 'धूमिल' की चंद पंक्तियाँ शायद इसका जबाब देते हुए स्त्रियों से कह रही है- 
       ''अपनी आदतों में फूलों की जगह पत्थर भरो
        मासूमियत के हर तकाजे को ठोकर मार दो
        अब समय आ गया है कि 
                        तुम उठो और अपनी ऊब को आवाज दो''' 

सोमवार, 13 जनवरी 2014

संन्यासी, जिसने कभी पूजा नहीं की

                                                                            -विनय कुमार                 

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे सन्यासी थे, जिन्होंने कभी पूजा-पाठ नहीं किया और न ही कभी कर्मकांड को महत्त्व दिया. जो कि आज के सन्यासी होने की आवश्यक शर्तें हैं. जिस सन्यासी ने कभी भगवान का नाम लेकर समाज की समस्याएं दूर नहीं कीं, बल्कि उन्होंने आध्यात्म की ऐसी राह दिखाई, जिसमें व्यर्थ के अन्धविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था. तर्कसंगत ढंग से समाज में व्याप्त दुखों और समस्यायों के कारणों को खोज कर भारतीय समाज में वैज्ञानिक दृष्टि विकसित करने में अहम भूमिका निभाई.
मात्र उनतालीस साल के जीवनकाल में, बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में न केवल ज्ञान के गहरे सागर का मंथन कर महत्वपूर्ण सत्यों की खोज की, बल्कि उन्हें अपने लेखन के माध्यम से दूर-दूर तक प्रसारित किया और लंबे समय के लिए मानव कल्याण के लिए छोड़ गए. उनकी इस तपस्या का लाभ करोड़ों लोगों को जीवन बदलने वाले संदेशों के रूप में मिला.

युवाओं के लिए उनके सन्देश एक अमर तत्व की तरह हैं, अपने जीवन में वे महत्वपूर्ण सवालों के जबाब खोजते रहे. सच्चाई की यह खोज ही उन्हें ऐसे समाधानों कि ओर ले गयी, जो आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं. जिस तरह आज के युवा तनाव और भागमभाग की अंधी दौड में बिखराव सी ज़िंदगी जी रहे हैं, और युवावस्था में ही डिप्रेसन और निराशा से भरे हैं, ऐसे में स्वामी जी के चरित्र निर्माण के सन्देश अपनाकर युवा चुनोंतियों के संसार में सहज ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं. विवेकानंद कहते हैं कि अगर आज आपने आत्मसाक्षात्कार नहीं किया तो आपने एक महान इंसान से मिलने का अवसर गवां दियासच ही तो है आज की भागदौड में हम कितना वक़्त निकाल कर अपना आत्मविश्लेषण करते हैं. जबकि यह हमारे व्यक्तित्व के विकास में सबसे अहम प्रक्रिया है.
उनका सबसे बड़ा सन्देश यही था कि आलस्य और अज्ञान को छोडो और सामाजिक बुराइयों के बंधन को तोड़ कर देश और समाज को आगे ले जाओ. गरीब और उपेक्षित लोगों की सेवा करो, ताकि वे भी बराबरी हासिल कर सकें. महिलाओं को शिक्षा के भरपूर अवसर दो, ताकि वे भी सार्थक बदलाव में भूमिका निभा सकें. इस तरह सब कुरीतियों और कमजोरियों को दूर करने का मार्ग प्रसस्त हो.

स्वामी विवेकानंद जी के शिक्षा और शिक्षार्थियों के बारे में ऐसे विचार रखे, जो आज तक शिक्षा के सुधारों के लिए प्रासंगिक हैं. उन्होंने बच्चों में स्वाभाविक और स्वतंत्र रचनात्मकता को पनपने और खिलने को सबसे अधिक महत्त्व देते हुए कहा कि जैसे पौधा अपने से खिलता है वैसे ही बच्चों को स्व-शिक्षा से अपनी रचनात्मकता विकसित करने का भरपूर अवसर मिलना चाहिए. शिक्षक और अभिभावक कि भूमिका यह है कि वे इसके लिए अनुकूल अवसर दें, इसे अवरुद्ध कभी न करें. ज्ञान को ऊपर से लड़ना नहीं चाहिए.युवाओं को उन्होंने सन्देश दिया कि ‘‘किताबी ज्ञान से बाहर निकल कर कमजोर और निर्धन वर्ग की भलाई और समाज में सार्थक बदलाव की चुनोंतियों से जुडना जरूरी है.’’ उन्होंने स्त्री शिक्षा पर भी अत्यंत जोर दिया और कहा महिलाओं में शिक्षा का प्रसार सबसे जरूरी है और इसके साथ वे क्या राह अपनाना चाहती हैं, इसका निर्णय उन्हें खुद ही लेना है.


आज आवश्यकता है इन विचारों को आत्मसात करने की. ऐसे सन्यासियों की, जो अन्धविश्वासों के ढोंग नही रचाते बल्कि तर्कसंगत उपचारों से देश और समाज को एक सही दिशा दें.