गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

आई एल ए के सभी 21 मोडयूलों का प्रथम क्रियान्वन सम्पन्न

सिद्धार्थ नगर में आई एल ए के मॉड्यूल 21 तक 15 परियोजनाओं के 121 बी आर जी सदस्यों का प्रशिक्षण सम्पन्न हो गया हैं। जिनका प्रशिक्षण निदेशालय के निर्देशानुसार 15 दिवस के अंतराल पर एक मॉड्यूल का प्रशिक्षण आयोजित कराया गया। हर मॉड्यूल के पहले प्री-टेस्ट और अंत मे पोस्ट-टेस्ट आयोजित किया गया जिसमें नब्बे फीसदी बी आर जी सदस्य उत्तीर्ण हुए।


सहयोगी विभागों के सदस्यों की भागीदारी-ः शुरुआत में अन्य विभागों से बी आर जी मे शामिल सदस्यों की प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागिता में कमी देखी गयी जिसके लिए योजना बनाकर कन्वर्जेंस के जरिए सहयोगी विभागों जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग से बी आर जी मे शामिल सदस्यों को सक्रिय भागीदार बनाया गया।  जिला स्तरीय एवं ब्लॉक स्तरीय कन्वर्जेंस की बैठकों में आई एल ए मॉड्यूलों का महत्त्व और संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया।


दोतरफा संवाद एवं सक्रिय भागीदारी -ः बी आर जी प्रशिक्षण के दौरान आई एल ए के मोड्यूलों की विषय सामग्री के साथ-साथ प्रशिक्षुओं की प्रशिक्षण क्षमता वर्धन पर ज्यादा ध्यान दिया गया। मॉड्यूल प्रशिक्षण में प्रशिक्षु सदस्यों से रोल प्ले और मॉड्यूल प्रस्तुतिकरण करवा कर उन्हें फीडबैक दिए गए। 


डी आर जी सदस्य स्वस्थ भारत प्रेरक विनय कुमार ने प्रेरक गीतों के जरिए प्रशिक्षण ले रहे सदस्यों को रचनात्मक रूप से सक्रिय रखने और प्रेरित करने की कोशिश की।  
ऐसी ही एक वीडियो का लिंक :-





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सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षण- सिद्धार्थ नगर में 15 परियोजनाओं के सभी 87 सेक्टरों में सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षण मॉड्यूल 20 तक सम्पन्न हो चुका है। जिले में कुल 3112 आंगनवाड़ी केंद्र हैं जिनमें 2714 आंगनवाडी कार्यकर्ता कार्यरत हैं। उनमें से 2671 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया, जो कि कुल आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का 98.41 फीसदी है।

सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षणों का डी आर जी के सदस्यों द्वारा सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया गया जिससे कि प्रशिक्षण दे रहे बी आर जी सदस्यों के उत्साह वर्धन और प्रशिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित की गई।
बी आर जी प्रशिक्षण के दौरान सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षण पर जोर दिया गया, क्योंकि अंततः आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को ही मोड्यूलों की विषय सामग्री लाभार्थियों तक पहुंचानी है, लिहाजा यदि उन्हें बेहतर तरीके से प्रशिक्षित किया जाए तो आई एल ए के क्रियान्वयन का उद्देश्य पूर्ण रूप से सफल होगा। इसके लिए ये भी सुनिश्चित किया गया कि प्रत्येक सेक्टर स्तरीय प्रशिक्षण में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ’टेक अवे’ प्रदान किए जाएं।

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

#NoWaterOnlyBreastfeed : Zero Budget Campaign in Siddharth Nagar, UP


गर्मियां आने वाली हैं और ज्यादा पानी पीने की सलाह हर कोई देने की होड़ में है। और सही भी है कि गर्मियों में हमारे शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है इसलिए अधिक पानी पीना चाहिए। लेकिन छः माह के बच्चों को पानी नहीं पिलाना चाहिए क्योंकि उन्हें संक्रमण होने का खतरा रहता है. सिद्धार्थनगर जिले में ग्रामीण क्षेत्र नब्बे फीसदी से ज्यादा है और वहां कई तरह के चलन हैं इन्हीं चलनों में ये देखा गया कि छह माह से कम उम्र के शिशुओं को पानी चटाने की प्रवृत्तियां भी देखीं गयीं। महिलाओं को लगता है कि बच्चा प्यासा है, इसलिए गर्मियों की शुरुआत में इन शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए जिले में 'नो वाटर कैंपेन' की शुरुआत की।


जिसमें बजट न होने के कारन जीरो बजट इनोवेटिव प्लानिंग की गयी. जिला स्वस्थ भारत प्रेरक विनय कुमार ने जिला कार्यक्रम अधिकारी राजीव सिंह और जिला पोषण विशेषज्ञ बुद्धदेव कुमार के साथ मिलकर इस प्लान को तैयार किया और जिले के सभी बाल विकास परियोजना अधिकारी एवं मुख्या सेविकाओं को इसका प्रशिक्षण दिया।

शुक्रवार 12 अप्रेल को मिठवल ब्लॉक में जिला स्वस्थ भारत प्रेरक विनय कुमार ने जिला पोषण विशेषज्ञ बुध्ददेव कुमार और बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रियंका वर्मा के साथ मुख्य सेविकाओं को इस जागरुकता अभियान के बारे में जानकारी देते हुए अभियान की शुरुआत की.

                 साथ ही 15  अप्रेल को शोहरतगढ़ के आंगनवाड़ी केंद्रों पर जाकर गतिविधयां आयोजित करवाई और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया।


We have decided to go with Handmade contents & Visual contents utilizing CAS Smartphone given to AWWs as a Medium. 

As there is no budget allotted. We are working on zero budget plans-:

1.    Organizing Rangoli, Poster Making, Slogan Writing competition among Beneficiaries AWWs, LS and Poshan Sakhis at Block, Sector and AWCs.

2.    Digital Banners-Posters and Video content has been provided to CDPOs, LSs, AWWs and Poshan Sakhis through whatsapp and social media.

3.    Videos of officials speaking about campaign and its importance of No Water during summer for a child under six month of age.

4.    Utilizing Regional Media for spreading the awareness by maximum coverage of activities/planning conducted at Block, Sector and AWCs level.



Planning and Orientation at District, Block and AWC level-:


SBP Vinay Kumar Presenting Action Plan with DNS to CDPO and Lady Supervisors and Poshan Sakhi in Mithval Block on 12 April 2019.
Lady Supervisors asked to ensure activities of campaign conducted at AWC and report us.























On 15 April 2019, SBP Vinay Kumar with DNS participated in Mamata Divas and oriented AWWs about Action Plan at Gadakul AWC of Shauharatgarh block.
SBP helped them to combine the activities with Mamata Divas as target audience is the same and AWWs conducted slogan, poster and Shapath activities.

 

Poster Making and Slogan Writing Competition to engage them into message-:


15  अप्रेल को शोहरतगढ़ के आंगनवाड़ी केंद्र गढ़कुला पर Poster making and Slogan Writing गतिविधयां आयोजित करवाई और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया।


   


आंगनवाड़ी केन्द्रो पर रंगोली बनाकर महिलाओं को ज्यादा रंगो के खाद्य पदार्थ खाने को प्रेरित किया गया. साथ ही नो वाटर अभियान का संदेश भी दिया गया. चित्रों में सिद्धार्थनगर के भनवापुर ब्लॉक के आंगनवाड़ी केंद्र Shahpur पर रंगोली के जरिए संदेश दिया गया.

OATH for #NoWaterOnlyBreastfeeding Campaign-:

छह माह से कम उम्र के बच्चे को पानी न पिलाने के लिए स्वयं एवं अपने आसपास की धात्री माताओं को जागरूक करने के लिए शपथ कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें स्वस्थ भारत प्रेरक विनय कुमार ने शोहरतगढ़ ब्लॉक के आंगनवाड़ी केंद्रों पर जाकर प्रतिभाग किया और लाभार्थियों को नो वाटर अभियान का महत्त्व बताया।


Media Coverage of starting the campaign helped us to spread the information to AWWs and motivated stakeholders involved in planning and implementation. We sent the Press Release of implementation of our planning



Digital Banner, Poster and Video Content -:

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मिले कैश सॉफ्टवेयर के लिए स्मार्टफोन को उपयोग करते हुए हमने  इस अभियान में डिजिटल कंटेंट को उनतक पहुंचाने का प्लान किया है. इसमें बजट भी नहीं खर्च होगा और संदेश आकर्षक रूप से पहुंच जाएगा। डिजिटल माध्यम के रूप में मुख्यतः व्हाट्सएप को प्रयोग किया जा रहा है. जिले स्तर पर बने व्हाट्सएप ग्रुप में सभी सीडीपीओ और मुख्या सेविकाएं जुडी हैं और ब्लॉक स्तर परं सीडीपीओ और मुख्य सेविकाओं ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. इसी अनुक्रम के जरिये हम कंटेंट भेज रहे हैं.



कटेंट में पोस्टर्स और वीडियो सहित जरूरी लेख भेजे जा रहे हैं.





सेम्पल पोस्टर्स स्वस्थ भारत प्रेरक विनय कुमार ने बनाये हैंजिनमें ऑडिएंस को ध्यान में रखते हुए संदेश लिखे गए हैं. इसी तरह के कई पोस्टर्स और वीडियो डिजिटली भेजे जा रहे हैं. इन्हीं डिजिटल पोस्टर्स से आंगनवाड़ी अपने हाथोंसे पोस्टर्स बना रही हैं.





शनिवार, 1 दिसंबर 2018

गांव-गांव पोषण 'पोषण चौपाल' : स्वस्थ भारत प्रेरक की जागरूकता पहल

 ---:-पोषण चौपाल-:-
          .............गांव-गांव पोषण अभियान
Objectives:-
:- Bringing all village level front line stakeholders (Pradhan, Secretary, Kotedar, Principal of School, SHG, Rojgar sevak, ANM, ASHA, AWW etc) at one Plateform and moderate a discussion with Villagers towards Village Malnutrition free plan
:- Strengthening VHSND and support to front line workers (Chaupal would be organised on VHSND) 
:- Awareness about Health & Nutrition in easy way relating suggestions to regional resources 
:- Discussion about Services under Poshan Abhiyan and Role & Responsibilities of each one including beneficiaries
:- Nukkad Natak for awareness and engaging Audience
:- Inviting District/Block Level officials to motivate front line stakeholders
:- Chaupal ended with Poshan Shapath
:- It's an initiative of Swasth Bharat Prerak in partnership with regional NGO Kapilavastu Welfare society and supported by ICDS Department, Siddharth Nagar


कपिलवस्तु वेलफेयर सोसाइटी और जिला स्वस्थ भारत प्रेरक की जागरूकता पहल 'पोषण चौपाल' की शुरुआत बाल विकास परियोजना अधिकारी ने बर्डपुर विकास खण्ड के देवियापुर गांव से की। सिद्धार्थ नगर में कुपोषण मिटाने के लिए सीधे जन-जन से संवाद करने के लिए गांव-गांव 'पोषण चौपाल' के आयोजन में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाकर पोषण सेवाएं देने के साथ जन-जन को जागरूक किया जा रहा है। जहां ग्रामवासियों को एक मंच पर लाकर पोषण सम्बन्धी जानकारी के साथ कुपोषण मिटाने के लिए ग्राम स्तरीय योजना बनाई जाएगी।


पोषण चौपाल को संबोधित करते हुए बर्डपुर विकास खण्ड के बाल विकास परियोजना अधिकारी संजय सिंह ने कहा कि पोषण चौपाल से पोषण का संदेश घर-घर तक पहुंचेगा। उन्होंने चौपाल में तिरंगा भोजन को समझाते हुए कहा कि स्थानीय साग-सब्जी जैसे कद्दू, गाजर, मूली, पनीर, मशरूम, दूध, घी, हरि सब्जियों से पोषण मिलता है इनका निरन्तर सेवन करते हुए सफाई का खास ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने महिलाओं में खून की कमी के लिए आयरन की गोली या आयरन वाली चीजें खाते समय इसके साथ खट्टी चीज़ों का सेवन जरूर करने का सुझाव दिया। साथ ही उपस्थित महिलाओं से आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सहयोग से सम्पूर्ण जांच एवं टीकाकरण जरूर करवाने का आग्रह किया।

जिला स्वस्थ्य भारत प्रेरक विनय कुमार ने पोषण चौपाल की शुरुआत करते हुए विभिन्न गतिविधियों से सीधे लाभार्थियों को जागरूक किया। इस अभियान के बारे में उन्होंने बताया कि पोषण चौपाल के जरिए पोषण अभियान के अंतर्गत सभी विभागों का कन्वर्जेन्स ग्रामीण स्तर पर सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण स्तर पर कार्यरत सभी विभागों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाया जा रहा है जिससे गाँव के लोगों के बीच प्रधान, सचिव, कोटेदार, ए एन एम, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता गांव को कुपोषण मुक्त करने के लिए योजना बनाएंगे। इसके साथ ही सीधे लाभार्थियों को सरल भाषा मे जानकारी दी जा रही है जिससे वे डालने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखकर उपलब्ध खाद्यानों से बच्चों और महिलाओं का पोषण सुनिश्चित कर सकेंगे।

पोषण चौपाल में आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता ने ग्राम कन्वर्जेंस प्लान प्रस्तुत किया जिसपर उपस्थित प्रधान, कोटेदार, रोजगार सेवक, ए एन एम और आशा सहित  ग्रामवासिओं ने चर्चा की और महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए. साथ ही अगले महीने के लक्ष्य निर्धारित कर उसके लिए प्रत्येक प्रतिनिधि की गतिविधियां तय की गयीं।

ग्राम प्रधान सर्वेश कुमार ने कहा कि पोषण चौपाल में गांव में उपलब्ध सुविधाओं की चर्चा करते हुए  ग्रामवासिओं से सहयोग देने  को कहा. उन्होंने चौपाल में एड्स दिवस पर संक्रामक रोगों की चर्चा करते हुए जागरूक रहकर लोगों को जांच कराने को प्रेरित किया। उन्होंने ग्रामवासियों से सहयोग का आग्रह करते हुए सरकारी योजनाओं में सक्रिय भागीदारी निभाने को कहा। उन्होंने बताया कि कपिलवस्तु वेलफेयर सोसाइटी जिले के ज्यादा से ज्यादा ग्रामों में चौपाल का आयोजन करेगी।




पोषण चौपाल में स्वनीति स्पार्क एसोसिएट पीयूष चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार आंगनबाड़ी, आशा ए एन एम के जरिए बच्चो की देख भाल करती है लेकिन पोषण के लिए सबसे पहले अभिभावकों को जागरूक होना पड़ेगा। आंगनबाड़ी, उप स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, कोटे की दुकानों पर जाकर वहाँ अपनी सुविधाओं के बारे में पूछना होगा।

अंत में उपस्थित जन समुदाय को बाल विकास परियोजना अधिकारी ने 'पोषण शपथ' दिलाई गई।
इस अवसर पर ग्राम प्रधान, प्रधानाचार्य बलवंत चौधरी, कोटेदार, आशा, आंगनवाड़ी, सुपर वाइजर, वरिष्ठ लिपिक सुनील पांडेय, कलावती शर्मा, मो.आरिफ, उर्मिला, सुनीता, शैलेश, पुनीत जायसवाल, संतोष सहित 123 ग्रामवासी एवं बच्चे उपस्थित रहे.


शनिवार, 2 दिसंबर 2017

किसान के बेटे ने किया बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर चलाने वाले रिमोट का अविष्कार

 राजस्थान के बारन जिले के बमोरी कला गाँव में एक किसान के बेटे ने खेती के लिए गज़ब का अविष्कार किया है। योगेश नागर ने ट्रैक्टर को चलाने वाले रिमोट का अविष्कार किया है जिससे दूर बैठकर ट्रैक्टर को चलाया जा सकता है। इस अनौखे अविष्कार के साथ-साथ उन्होंने अबतक 30 अविष्कार किए हैं। इस युवा की ज़िन्दगी भी रोचक है।




योगेश नागर की दसवीं तक पढाई गांव में ही हुई। बड़ी मेहनत से पढ़ते हुए योगेश बोर्ड परीक्षा में गांव के टॉपर रहे तो आगे की पढाई के लिए पास के ही जिले कोटा चले गए। वहां 12 वीं की पढाई करते वक़्त योगेश का मन पढ़ने से ज्यादा कुछ न कुछ नया बनाने में लगा रहता था, उस समय वे आर्मी के लिए एक ऐसा वाहन बनाने में जुट गए जिसे आंधी-तूफान या अँधेरे जैसी स्थिति में कभी भी कहीं से भी चलाया जा सके, इस खोज में जुटे रहने की वजह से उनके अंक परीक्षा में कम आए लेकिन उन्होंने एक साथ कई अविष्कार कर डाले।
अब तक 30 अविष्कार कर चुके योगेश बताते है, “मैं 7 वीं कक्षा से अविष्कार कर रहा हूँ, भाप से जुड़े कई अविष्कार किए। घर की स्थिति ठीक नहीं थी तो अविष्कारों में लगने वाले सामान के लिए पैसा कम मिल पाता था। फिर भी मेरा मन कुछ न कुछ खोजने में लगा रहता है। जब भी कोई दिक्कत सामने होती है, इसे लेकर हर रात सोने से पहले सोचने लगता हूँ और कई दिनों में कुछ न कुछ नया आइडिया मेरे दिमाग में आ जाता है।”

महज 19 साल के योगेश अभी बी एस सी प्रथम वर्ष के छात्र हैं। 

योगेश के पिताजी गांव के खेतों की जुताई करने और अन्य कृषि कार्यों के लिए ट्रैक्टर चलाते हैं। खेतों की बुआई के सीजन में रात-रात भर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है, ताकि सबकी बुआई समय पर हो। इसी तरह फसलों की कुटाई के वक़्त दिन-रात ट्रैक्टर की सीट पर ही गुजरते हैं।
घर की स्थिति बताते हुए योगेश कहते है,  “ट्रैक्टर हमने लिया था पर हमारा नहीं था। 2004 में पिताजी ने मामा की जमीन गिरवी रखकर ट्रैक्टर लोन पर लिया था। जिसकी कीमत चुकाने के लिए दिन-रात जुटे रहते थे।”

ट्रैक्टर खेतों में चलाना कई तरह की चुनौतियों से भरा होता है, लगातार ट्रैक्टर खेतों के ऊँचें-नीचे चढाव-उतराव पर चलाने से शरीर के कई हिस्सो में परेशानी होने की सम्भावना होती है।

योगेश के पिता
यही योगेश के पिताजी के साथ हुआ। लगातार ट्रैक्टर चलाने की वजह से उन्हें पेट में दर्द की शिकायत होने लगी।
“पिताजी पिछले 30 साल से ट्रैक्टर चला रहे हैं, दिन रात ट्रैक्टर की सीट पर बैठने से पेट दर्द की शिकायत हुई और डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी। पर पिताजी नहीं माने और वे ट्रैक्टर चलाते रहे, क्योंकि घर की जरूरतें ऐसी थीं कि वे मजबूर थे।”
डॉक्टर की सलाह न मानने के कारण योगेश के पिताजी की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। तब योगेश ने इसके लिए कोई रास्ता निकालने की सोची और जुट गए। योगेश ने ट्रैक्टर को बड़े ध्यान से देखना और समझना शुरू किया। दो दिन तक ट्रैक्टर को गहराई से समझने के बाद योगेश अपने काम पर जुट गए। उनका मकसद था पिताजी को ट्रैक्टर की सीट से हटाकर सुरक्षित करना और उसके लिए उन्हें ऐसा यन्त्र तैयार करना था जो बिना ड्राईवर के ट्रैक्टर को चला सके।
“मैंने दो दिन ट्रैक्टर को ध्यान से देखा और फिर रिमोट का मॉडल बनाने में जुट गया। 2004 मॉडल के ट्रैक्टर में तब पॉवर ब्रेक जैसे फंक्शन भी नहीं थे, फिर भी मैंने पिताजी से 2000 रूपये लिए और उनके लिए एक सेम्पल मॉडल बनाकर उन्हें दिखाया। पिताजी को पहले भरोसा नहीं था पर फिर मॉडल देखकर उन्हें पसन्द आया और उन्होंने रिमोट बनाने के लिए पैसा मंजूर कर दिया।”
पिताजी से 50 हज़ार रूपये लेकर योगेश ने अपना काम शुरू कर दिया। रिमोट मे लगने वाले बहुत से पार्ट उन्होंने घर पर ही बनाए।

इस वर्ष जून में ही उन्होंने पिताजी को सेम्पल मॉडल बनाकर दिखा दिया था; फिर अगले दो महीनों में उन्होंने पूरा रिमोट बनाकर ट्रैक्टर चला दिया।

 रिमोट बनाते वक़्त उन्होंने ध्यान रखा कि उसका मॉडल ठीक वैसा ही हो जैसा ट्रैक्टर में होता है।
“मेरे लिए चुनौती थी कि इस रिमोट को पिताजी चलाएंगे कैसे? इसलिए मैंने उसमें सबकुछ उसी तरह रखा जैसे ट्रैक्टर में होता है। रिमोट में ट्रैक्टर की तरह स्टेयरिंग है, क्लच, ब्रेक और गियर उसी तरह बनाने की कोशिश की है, ताकि किसान को चलाने में दिक्कत न आए।”
रिमोट में सेटेलाइट से ट्रैक्टर को कनेक्ट किया गया है। और डेढ़ किलोमीटर की रेंज तक ट्रैक्टर को इस रिमोट से चलाया जा सकता है। किसान खेत की मेंड़ पर बैठकर आराम से खेत की जुताई कर सकता है।
योगेश के गांव में बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर चलता देख लोग कौतूहल से भर गए। उन्होंने अपने इस मॉडल का वीडियो बनाकर यूट्यूब और व्हाट्सएप पर डाला तो वायरल हो गया। उसके बाद उनके पास कई किसान आए जिन्होंने इस तकनीक को अपने ट्रैक्टर में लगाने की मांग योगेश के सामने रखी।
रिमोट लगाने की कीमत के सवाल पर योगेश कहते हैं, “जैसे जैसे लोगों को पता चल रहा है, वो मेरे पास आ रहे हैं। अभी तक करीब 50 से 60 किसान मेरे पास आए हैं, जो अपने ट्रैक्टरों में ये तकनीक लगवाना चाहते हैं। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि उन सब की मदद कर पाऊँ और इसे सस्ती से सस्ती कीमत में किसानों तक पहुंचाया जा सके”
वैसे योगेश का मानना है कि अगर इस पर थोडा और रिसर्च किया जाए तो इसकी कीमत 30 हज़ार रुपए तक आ सकती है। योगेश के पास आए किसानों ने इस रिमोट को लगाने के लिए एक लाख रूपये तक खर्च करने की बात कही है।
योगेश के पिता बाबूराम नागर खुश हैं और अपने बेटे पर गर्व करते हुए कहते हैं,”बेटे ने हमारे दर्द की वजह से इसका अविष्कार किया पर अब ये हमारे जैसे और भी किसान भाइयों के काम आएगा। इस बात की हमें ख़ुशी है और अपने बेटे पर गर्व है।”

योगेश का सपना है कि वे आर्मी के लिए एक अनोखा वाहन बनाएं।


योगेश अपनी 11 वीं कक्षा से आर्मी के लिए एक अनोखा वाहन डिजाइन कर रहे हैं, जो किसी भी मुसीबत में लड़ने के लिए तैयार हो। अब तक 30 से अधिक अविष्कार कर चुके योगेश एंटी-थेप्ट मशीन भी बना चुके हैं, जो आपके घर में किसी के घुसने की जानकारी आपको दुनियां के किसी भी कोने में दे सकती है। इसके साथ ही योगेश ने पॉवर सेवर नाम से एक उपकरण बनाया है जो सेटेलाइट से कनेक्ट होने की वजह से सभी बिजली उपकरणों को बन्द या चालू कर सकता है। इससे खेतों में लगे ट्यूबवेल भी घर बैठे चलाए जा सकते हैं, और खेत में बैठकर घर में जलती लाइट को भी बुझाया जा सकता है।
अपने अविष्कारों  के बारे ने बात करते हुए योगेश कहते हैं कि, “अब तक मैंने कुल 30 अविष्कार किए हैं; कुछ और अविष्कारों पर काम जारी है। मुझे जो भी समस्या अपने आसपास दिखती है, उसे मैं पहले गौर से समझता हूँ, फिर उसके समाधान के लिए 8 से 9 दिन रिसर्च करता हूँ और फिर कुछ ऐसा निकलता है जो अविष्कार बन जाता है। मुझे अविष्कारों में लगने वाले सामान के लिए पैसे की जरूरत रहती है जो नहीं मिल पाता। तो अगर सरकारी या निजी सहयोग मिले तो मैं अपने सपने को साकार कर पाउँगा और देश के लिए मेहनत से जुटकर कुछ योगदान दे पाउँगा।”
द बेटर इंडिया की ओर से योगेश के अविष्कार पर उन्हें बधाई और ऐसे युवाओं को सहयोग करने के लिए आप से निवेदन करते हैं कि जो सम्भव सहायता हो सके आप करें। आप अगर योगेश तक अपनी कोई भी सहायता पहुँचाना चाहते हैं, तो उनके इस नम्बर 8239898185 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

शनिवार, 26 अगस्त 2017

हाजी मलंग यात्रा

इबादत के रंग : : हाजी मलंग
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मुम्बई के किनारे लगे कल्याण से एक घण्टे की दूरी पे अल्लाह ने जन्नत बसाई है.. कभी वक़्त हो तो भीगने और झूमने चले जाइए.. हम तो नाम सुने और खिंचे से चले गए.. एक फकीर ने कहा कि बाबा मलंग ने तुम्हें ऊपर तक चढ़ा ही लिया, उनका मन होगा तुमसे मिलने को...

भ्रमण उमंग : : हाजी मलंग
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शनिवार की शाम... साथियों के संग जब घूमने की बात ही चली तो ज़िक्र हाजी मलंग का हो उठा.. हाजी अली देखा था हाजी मांग का नाम सुना था.. सबकी हामी एकसाथ हुई और चल पड़े.. कल्याण पहुंचते-पहुंचते 6.30 बज गए, वहां से मलंगगढ़ के लिए बस नहीं मिली टेक्सी को एक्स्ट्रा पैसे देके निकल पड़े.. 
मलंगगढ़ से करीब तीन किलोमीटर की चढ़ाई है हाजी मलंग बाबा की दरगाह तक पहुंचने के लिए.. लगभग तीन हज़ार सीढियां चढ़नी होती हैं.. शुरू में चढ़े तो थकान के साथ भीगने से बचने की जद्दोजहद रही. लेकिन एकबार पूरे भीगे तो फिर न थकान हुई और न बचने की कोई कोशिश... आधे रास्ते में मजार पड़ती है वहां नमाज के बाद एक चाचा की दुकान पे पेटभर के खाया और हम ऊपर साढ़े दस बजे पहुँचे.. देरी से पहुंचने की अच्छी बात ये रही कि लौटने का विकल्प धूमिल होता गया.. और एक रात पहाड़ पे सोने को मिल गयी..
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जन्नत के रंग : : हाजी मलंग 
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ये अजूबे से कम नहीं है कि तीन किलोमीटर ऊंचे पहाड़ की चोटी पे पूरा गांव बसा है.. और आज से नहीं सदियों से लोग रह रहे हैं.. पानी के कुएं हैं और खाने की कमाई यात्रियों से निकलती है.. वहां इतना कुछ है कि अचम्भा होता ही कि इसे सीढ़ियों से कैसे ऊपर चढा के लाया गया होगा..
सुबह आँख खुली तो ज़िन्दगी की सबसे खूबसूरत सुबह ने झरनों से स्वागत किया.. सबसे पहले बाबा की दरगाह में जी भर के बैठे.. हम पहाड़ी के आंचल में बादलों की फुहारों के बीच थे.. ऊपर उमड़ रहे बादलों के नीचे हम घूम रहे थे.. पहाड़ी के किनारे पहुंचकर नीचे झाँके तो नज़ारे आँखो में समा नहीं पाए तो झट से मोबाइल में कैद करने लगे.. बूंदें झर रही थीं और हम हरी घास पर फिसलते कूदते जा रहे थे.. ऊँचाई से शहर डराता नहीं है खूबसूरत लगता है...
आने का मन नहीं कर रहा था, मगर लौटते हुए सीढ़ियों से रात को नज़ारे न देख पाने के मलाल ने लौटने में दिलचस्पी जगा दी.. और फिर लौटते हुए सीढियां हमें सरका रहीं थीं, रास्ते में एक रास्ते ने मोड़ दिया और हम झरने में मुंह धोने चले गए... साथियों की नौंकझौंक भजिया पाव जैसी रही..! तीन हज़ार सीढियां लौटते हुए और शानदार लग रही थीं.। जहाँ भी रास्ते ने नोंक छोड़ी वहां जब मन किया मुड़ लिए..
पिछली शाम को गए आज शाम लौटे...

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