गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

तेरे हिस्से का वक़्त...


"जिसने वक़्त को नही समझा वो हमेशा हारा है " ये पंक्ति किसी महानुभाव ने किसी ज़माने में लिखी होगी , मगर इसका सिक्का ऐसा जमा कि हर कोई भयभीत रहने लगा। और सबने वक़्त को कैद करना चाहा।  लेकिन जब बुद्धिमानों की समझ में ये आया कि "वक़्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता।" तो फिर हार मानने की  बजाय वक़्त को बाँट दिया।  पहले सालों में , महीनों में , हफ़्तों में ,दिनों में ,घंटों में ,मिनटों में  फिर सेकण्डों में और अब तो सेकण्ड के भी हजारों हिस्से कर दिए गये हैं। मगर फिर भी वक़्त है कि  हाथ ही नहीं आता.

यूँ तो ये वक़्त दिनभर सरपट दौड़ता रहता है, सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलती। मगर जैसे ही शाम होती है , तो सूरज के साथ वक़्त भी ढलने लगता है और रात होते होते ठहर सा जाता है। लगता है जैसे इसके साथ ही मेरी साँसे भी ठहर जाएंगी। मैं हर शाम से देर रात तक तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ , जब तक कि तुम सो नहीं जाते (मुझे पता है, तुम कब सोते हो ). मगर तुम नहीं आते लेकिन हाँ तुम्हारे हिस्से का वक़्त जरूर चला आता है,,,,एक घने कोहरे की  चादर ओढ़े।  और फिर वही दिनभर सरपट दौड़ने वाला वक़्त इत्मिनान से सुस्ताता  है , लगता है जैसे घड़ी की सुइयाँ बर्फ़ सी जम गईं हैं और उन्हें अलाव की  जरूरत है। 
 आजकल दिन छोटे और रातें बहुत लम्बी होने लगीं हैं। 


तू मेरी ज़िंदगी में शामिल नहीं है लेकिन …
तेरे हिस्से का वक़्त आज भी तन्हा गुजरता है।

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

मीडिया की चुप्पी

'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी'  यानी दुनियां कि सबसे बड़ी मूर्ति के तौर पर घोषित की गयी सरदार पटेल की प्रस्तावित मूर्ति की आधारशिला गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रख दी है.
याद  करें, एक अरसा पहले उत्तरप्रदेश की तत्कालीन  मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में महापुरुषों की मूर्तियां स्थापित करने को लेकर मीडिया की भूमिका किस हद तक आलोचना से भरी थी, टीवी स्टूडियो में प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की कभी न खत्म होने वाली अनगिनत बहसों में लब्बोलुआब यही रहता था कि मायावती इतना पैसा इन मूर्तियों में खर्च करने की बजाय अगर स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण में लगातीं तो प्रदेश का कल्याण होता . जनता का पैसा सही ठिकाने लगता.
फिर  आज एक मुख्यमंत्री की राजनैतिक तरक्की के लिए इतने बड़े पैमाने पर खर्च हो रहे पैसे पर मीडिया चुप क्यों है?
मायावती की कई दिनों तक टांग खींचने वाला मीडिया इसमें पैसे कि बर्बादी देख रहा था. और तब यही मीडिया सरकार को पैसा जनहित में खर्च करने की तमाम योजनाएं सुझा रहा था,
यह प्रस्तावित मूर्ति अमेरिका स्थित 'स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी' से दुगुनी होगी और रूस के रियो-डी-जेनेरियो स्थित ईसा की मूर्ति से चार गुना लंबी होगी .

रविवार, 3 अगस्त 2014

Freindship day

उसके मिलने के बाद मैंनें किसी से दोस्ती नहीं की.
उसने मेरे हजार दोस्तों की कमी पूरी की.
और मैं उससे हमेशा हजार दोस्तों जितनी उम्मीदें करता रहा,
उसने मेरी 999 उम्मीदें पूरी कीं, पर मैं बाकी एक उम्मीद के पूरी न होने पर झगडता रहा.......
मगर,
वो अपनाए रहा मुझे, मेरी सारी ग़लतियों के बाबजू़द...
कई बार सोचता हूं कि मैं क्या हूँ उसके बिना? पर
फिर भी कभी-कभी हिम्मत नहीं जुटा पाता कि सिर झुकाकर माफी मांग लूँ , और कह दूं- "तुम इस ब्रह्मांड की सबसे खूबसूरत और सच्ची दोस्त हो! मुझे कभी अकेला मत छोडना"

रविवार, 15 जून 2014

पापा

उंगली पकड कर चलना सिखाया
बाहों में लेकर झूला झुलाया
अपने हाथों से निवाला खिलाया
अक्षरों से पहली मुलाकात करवाई
कांधे पे बिठा के दुनियां दिखाई
दुनिया की मेरी हर पसंद दिलाई

छोटी छोटी गलतियों पर डांटा
ताकि कोई पराया न डांट सके
मैं नाराज हुआ तो कभी नहीं मनाया
ताकि मैं कहीं रूठना न सीख जाऊँ
मेरी छोटी-मोटी उपलब्धियों पर कभी प्रसंशा नहीं की
ताकि मुझे कहीं गुरूर न हो जाए

पापा,
एक आप ही तो हैं,
जिनसे मांगते वक्त मैं कभी ये नहीं सोचता कि
ये चीज मुझे मांगनी चाहिए थी या नहीं..

रविवार, 11 मई 2014

क्या लिखूं 'माँ' लिखने के बाद..

मैं जानता हूँ आज का  दिन थेंक्स बोलने का है, हर माँ को उसकी सारी कुर्बानियों और जीवन देने के लिए थेंक्यू बोलकर उसका एहसान चुकाने का दिन.. मगर मैं ये औपचारिकता पूरी नहीं कर पाउँगा... क्यूंकि मैं उस एहसान को एक आसान  और महज़ औपचारिक शब्द में नहीं बांधना चाहता.
लेकिन मुझे भी कुछ कहना है आज. जब पूरी दुनियाँ अपनी माँ से बात कर रही है तो मैं भी वो सब कुछ लिखना  चाहता हूँ जो मैं अपनी माँ से बोल नहीं सकता. बडी हिम्मत कर के लिख पाया हू....



मेरी प्यारी माँ, 

            स्थानांतरण में आप छोड़ गईं हैं,,,,,,, 
सारी दुनियां से बड़ा स्मृतियों का संसार..
कितनी ही बातें, नसीहतें, कितनी घटनाएँ और कितने सारे पाठ..
मेरी बड़ी से बड़ी परेशानी का छोटा सा हल
हजारों उलझनों का प्यारा सा सोल्यूशन
किताबों से लेकर ज़िंदगी तक का ज्ञान..
मेरी हर नादान कोशिश पर बड़ा सा कोम्पलीमेंट..
मेरे आसपास रहकर एक पूरा कवच बना दिया था 
मेरे नन्हे सपनो को पनपने दिया, अपने दुनियां से बड़े आँचल की छाँव में..
मेरी हर इच्छा को पंख लगाकर, छोड़ दिया खुले आसमान में ..
मैंने जो करना चाहा उसमे आप जुट गयीं जी जान से...
                       न जाने कितनी ही बातें, जो आपने कभी बताईं भी नहीं 
                      मगर आपके सानिध्य से  मेरे व्यक्तित्व में शामिल हो गयी
    
जीतने पर इतराना नहीं
हारने पर रोना नहीं
गिरने पर धूल झटककर 
फिर से उठ खड़े होना सिखाया 
'लक्ष्य' और 'आदर्श' का फासला
तय करवाया 
मेरी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर पीठ थपथपायी 

ऐसी ही ढेरों स्मृतियाँ हैं हमारे साझे की, मैं कभी नहीं बता पाउँगा आपने मुझे क्या दिया? क्यूंकि आपने माँ की तरह कभी उसका एहसास नहीं होने दिया. आपकी हर भावना एक माँ से कभी भी एक रत्ती कम नहीं लगी.. ठीक माँ की तरह डांटना और उसके बाद बुला के समझाना..  और उससे भी बड़ी ताकत थी उस एक अनजान भरोसे की. जो न जाने कब बन गया था कि हर मुश्किल आपसे आकार कह देना.. हर शिकायत आपके पास ले जाकर पटकना.. और समाधान पा लेना...
 जिस दिन आपने जाने की बात की उस दिन सारी दबी जड़ें उखड गईं, यकीन  नहीं कर पाया कि आज तक एक बड़े बरगद की छाया में खेलते कूदते रहे. कभी सोचा ही नहीं उसकी छाँव के बिना जीवन कैसा होगा. अचानक लगा जैसे सर से आसमान गायब हो रहा  है, उससे पहले उस आसमान की परवाह ही नहीं थी.. और ये सब भी आपने एक माँ की तरह किया कि जब माँ तक पास रहती है तब तक अपने होने तक का एहसास भी नहीं होने देती और जब दूर होती है तो उसकी मौजूदगी नज़र आती है... सिर्फ उसका ही वजूद होता है..
      आज भी सेंटर वही है, वही ईमारत, वही लाइब्रेरी, वही  क्लासरूम और कुल मिला के वही cms..                                        

आप नहीं आती न पढाने.......

तो अब  'दिन' ही चला आता है शिक्षक बनकर
अलख सुबह से देर रात तक, बेरुखी के थपेडों से सिखाता रहता है.
और मैं भी एक अनुशासित बच्चे की तरह सीखता रहता हूँ
खुद ही गिरता हूँ, संभालता हूँ, फिर उठकर चल देता हूँ
अब कोई गिला नहीं होता किसी से
किसी से कोई शिकायत नहीं करता
नहीं रूठता किसी से अब..
आज भी जब नहीं चलती क्लास तो मैं दूर कहीं अकेले बैठे पढता रहता हूँ अंग्रेजी के कुछ शब्द
नहीं जाता किसी को बुलाने क्लास के लिए..
जो पढाया जाता है पढ़ लेता हूँ चुपचाप...

        इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं है कि मैं बहुत दुखी हूँ, या परेशान हूँ..
        रोता भी नहीं हूँ क्यूंकि कमजोर होना नहीं सिखाया आपने
        जूझता भी नहीं हूँ किसी से, क्यूंकि ऊँचा बनना है मुझे
        निराश, हताश बिलकुल नहीं हूँ, आगे बढ़ना है मुझे
        आपकी शिक्षा को मुकाम देना है, मंजिल तक पंहुचकर
बस इस परिवर्तन के सांचे में ढलने का प्रयास कर रहा हूँ
कुछ समय लगेगा माँ की रिक्तता को भरने में .....
                             क्यूंकि ,
                
       
          माँ का होना भरे-पूरे संसार का होना होता है..
          उसकी सूरत में खुशियों का जादू-टोना होता है..
          लगता रहता है कि तुम गिरोगे तो उठा लिए जाओगे..
          गलती करोगे तो डाट  खा जाओगे
          रोओगे तो चुपा लिए जाओगे...
          

कई दिनों तक खोजा था मैंने आपको उसी लाइब्रेरी वाली ऑफिस में..  
आदतन कदम भीतर ही जाकर ठहरते थे.. और मुंह से निकल पड़ता-"आज मेम नहीं आयीं हैं क्या ?"
भगवान का शुक्र है कि एक आवाज़ मेरे इस पागलपन को छुपा लेती थी
"हाँ बताओ क्या चाहिए"- लाइब्रेरी वाली मेम ऑफिस में लगी अलमारी की आरती उतारते बोल पड़ती.
            आज भी यकीन होता है कि आप यहीं हैं.
         माँ की अनुपस्थिति में उसका संसार हमें घेरे रहता है..
                 

माँ ढूंढता हूँ तुम्हें तुम्हारे  ही जैसे किसी चेहरे में..
आपकी  सूरत तो मिलती सी है, मगर वो माँ नज़र नहीं आती.....

                                                                                                               --आपका बेटा                 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

वक़्त कब कहाँ रुका है किसी के लिए...

.

कमबख्त एक पल भी नहीं ठहरता कि,

रुक जाएँ कुछ साँसे

थम जाये नब्ज कुछ लम्हे  लिए

न बहे लहू इन धमनियों में कुछ पल

ठहर जाये आँखों के ख्वाबों का कारवां,   कुछ अरसे के लिए

ख़त्म  जाएँ सवालों के नुकीले नश्तर,    कुछ  लिए

जम जायें अतीत के पन्नों के चलचित्र,  कुछ लम्हों के लिए

  मैं न रहूँ,.... रहकर भी… कुछ वक़्त के लिए 

रविवार, 13 अप्रैल 2014

दाग अच्छे हैं ?

केजरीवाल ने जब दिल्ली के मुख्यमंत्री  पद  से इस्तीफ़ा दिया
तो  बिना किसी अफ़सोस के प्रधानमंत्री की  दौड़ में शामिल हो गये |
और फिर राज्यस्तरीय ज्वलंत रैलियां राष्ट्रस्तरीय परिवर्तनकारी  रोड शो में तब्दील हो गई | विरोधियों के कान खड़े हुए तो कभी हिंदी साहित्य की वर्णमाला  भी न जानने  वाले नेताओं के मुखारबिन्दु  से भी व्यंग्य फूट पड़े | एक राज्य न चला पाने के आरोपी अरविंद केजरीवाल पर देश  कैसे चलाने का पूर्वाभासी तीर छोड़ दिया गया | 'आप' को बच्चा कहा गया मौसमी बयार की  संज्ञा दी गई , और भारतीय जानता पार्टी के प्रधानमंत्री पद  के उम्मीदवार  ने तो केजरीवाल का पतन निश्चित कर दिया | ..



बस यहीं से मामला बिगड गया , अपनी धुन के जिद्दी केजरीवाल ने भी ईंट के जबाब में पत्थर फेंक दिया और वही पत्थर मोदी की  राह में रोड़ा बन गया | दरअसल अपनी फजीहत देखकर केजरीवाल ने घोषणा कर दी कि मोदी जहां से चुनाव लड़ेंगे, वे उनके सामने ही ताल ठोंकेंगे  |
     किसी फ़कीर कि तरह लंगोटी कसकर  तैयार केजरीवाल के पास खोने के लिए कुछ नहीं है मगर मोदी की मेहनत और पूंजी अगर निरर्थक रही तो गुजरात का दिखावटी विकास भी रुक जायेगा | अतः बड़ी जद्दोजहद के बाद नरेन्द्र मोदी को वाराणसी से उम्मीदवार बनाया गया | साफ जाहिर था कि केजरीवाल की ताल में धमक थी | मगर असली किस्सा तो उसके बाद घटा | जब केजरीवाल ने अपने बनारस प्रथम आगमन की तैयारियां की |

अभी केजरीवाल ने ट्रेन पकड़ी भी नहीं थी कि मोदी ने अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूंड लिया | अब वे गुजरात के वड़ोदरा से भी चुनाव लड़ेंगे और वहां उनकी सीट सुरक्षित मानी जा रही है  और ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बनारस से मोदी असुरक्षित है ?

             खैर, केजरीवाल 25 मार्च को अलख सुबह बनारस पहुँच गए, जाते ही बहती गंगा में डुबकी लगा दी. दिन  भर रोड शो प्रस्तावित था और शाम को महारैली.  केजरीवाल रोड शो के दौरान जैसे ही अपने रथ पर चढ़े कि पीछे से फूलों की बौछार सा आभास हुआ, लेकिन फूल इतना चुभते तो नही हैं, केजरीवाल असमंजस में पड़ गए, और जैसे ही पीछे मुड कर हालात का जायजा लेना चाहा कि अचानक एक किसी परिंदे का अंडा उनके मुंह पर अपनी छाप छोड़ गया. बस यही तो चाहते थे 'आप'. उन्होंने उस अंडे के तिलक को नहीं मिटाया बल्कि शाम की रैली में दहाड़ लगा दी कि ''मैंने तो पहले ही अंदेशा जताया था कि ये डरने वाले लोग मुझ पर छुप कर हमला करेंगे''


                                       
 यहीं एक बार फिर मोदी-खेमा मुंह की खाने का भविष्य तय कर गया, केजरीवाल पर जमकर स्याही फेंकी गई, मुमकिन है कई कलमें खाली हो गईं होंगी. वे कलमें जो समाज और देश बदलने की कुव्वत रखती है उसका खून यूँ ही सफ़ेद कमीज पर न्योछावर कर दिया गया. और ये दाग केजरीवाल ने नहीं धोए, और संजो के रख लिए. हो न हो यही दाग अच्छे  साबित हो जाएँ. क्यूंकि जानता की सुहानिभूती समेत ले गए हैं ये दाग, केजरीवाल पर हमला मात्र जनता का रुख केजरीवाल की तरफ मोड देने के लिए काफी है. मसलन वोट करने वाले लोग ये सोच कर तो जायेंगे ही कि जहां सत्ता में आने से पहले एक साफ छवि वाले संघर्षशील आम आदमी पर हमला हो रहा है तो सत्ता में आने के बाद तो ये सेवक आम जन को कैसे बख्शेंगे...

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

जो दिल में है, आज कह दो...

आखिर कई करवट बदलती रातों के बाद उसने साहस जुटा कर बोल ही दिया..
"मैं तुमसे प्रेम करता हूँ"
"क्या ??!!!!!!
  लेकिन हमसे ही क्यूँ ?????  लड़की ने तपाक से सवाल दाग दिया ...
लड़का निरुत्तर.... सहम कर चला गया !

दिनभर उलझन में रहा और करीब आधी रात में घर की छत के मुंडेर पे बैठकर चाँद को निहारते हुए अपनी डायरी के एक पन्ने में उसने लिखा-
"मैं उससे प्रेम करता हूँ ..
और यदि कोई पूछे कि उससे प्रेम क्यों ?
तो मेरा सीधा जबाब होगा कि इसकी कोई वजह नहीं है ...
  यदि प्रेम की कोई वजह होती भी हो .... तो मुझे नहीं पता !
इतना जानता हूँ कि मैं प्यार में हूँ .!

अपने प्यार का इज़हार करना किसी जंग लड़ने से कम नहीं है.. मोहब्बत में कभी-कभी दिल के ख्यालात को जाहिर करना खतरा मोल लेने जैसा होता है. इनकार का डर सताता है. खो देने का डर हमारे भीतर हमेशा कुछ न कुछ कुरेदता रहता है. कहीं हमारे इज़हार पर इनकार का कहर न टूट पड़े और सपनों के सारे आशियाने तहस-नहस न हो जाएँ.. फिर फैसला करते हैं कि नहीं रहने दो जैसे चल रहा है चलने दो...
मगर ‘ना’ का अनजान डर कई बार महबूब के दिल में छुपे ‘हाँ’ को भी जाहिर होने का मौका नहीं देता है. और ज़िंदगी एक असमंजस से भरी कसक में बीतने लगती है.. 

प्रेम साहस की मांग करता है,, साहस मन की आवाज सुनने का, मन में उठने वाले तूफानों को समझने का.. और जब आप निश्चित हो जाएँ कि हां आपकी ख्याली दुनियां का बादशाह वही है तो फिर उसे बताने का.. जिसके बिना ज़िंदगी अब तक अधूरी ही रही है. और बताने के साथ-साथ सबसे ज्यादा जरूरी है उसे एहसास दिलाने का कि अगर तुम साथ दो तो हम अपने खालीपन को दुनियां की तमाम खुशियों से भर लेंगे.. भरोसा दिलाने का कि अगर तुम साथ हो तो हम कर सकते हैं वो सब कुछ जिसके बिना हमारा एक होना अब तक मुकम्मल नहीं था. और अगर तुम एक हाथ थामो अपने हाथ में तो मैं दूसरे हाथ से कर लूँगा दुनियां को फतह... साथ मिलकर ज़िंदगी की कठिन राहों को आसान बना लेंगे.

कई बार कहा जाता है कि मोहब्बत का इज़हार शब्दों से नहीं होता., प्रेम जब दीवानगी में होता है तो शब्द प्रयाप्त नहीं होते... एक शायर ने तो लिखा है-
कौन कहता है मोहब्बत की जुबां होती है...
ये हकीकत तो निगाहों से बयाँ  होती  है .!'

सच है. दिल के ख्यालों को बयां करने के लिए हमेशा शब्द काम नहीं आते.. और भारतीय समाज में तो शब्दों से इज़हार जैसे प्रतिबंधित ही है.. प्रेम को बयां करना जैसे अतिशयोक्ति माना जाता है.. मसलन जब आप करते हैं तो उसमे कहने जैसी  कोन  सी बात है, और यही संस्कृति प्रेम के इज़हार पर संकोच का पहरा भी लगाती है.. 
मोहब्बत में हर वक़्त आपको ख्याल रखना पड़ता है कि आप अकेले नहीं हैं, आपसे किसी की ज़िंदगी, किसी की खुशियाँ जुडी हैं. लिहाजा , उसकी परवाह करना भी इस बात का इज़हार करता है कि आप मोहब्बत करते हैं.  

मसलन, अगर कोई आपसे यह नहीं कहे कि आपसे कितनी मोहब्बत करता है, लेकिन दिन-रात वो आपकी खुशी और तरक्की के लिए मेहनत कर रहा है.... अगर कोई है जो आपसे बिना इज़हार किये आपकी हर पल परवाह कर रहा है,,, समझ लीजिए कि ये भी उसके प्रेम के इज़हार का ही एक तरीका है.-- और शायद सबसे दमदार और सबसे खूबसूरत तरीका है. निस्वार्थ प्रेम का ऐसा इज़हार जीवन में बहुत कम मिलता है..  जहां उसकी मोहब्बत ने शब्दों को पीछे छोड़ दिया है, लफ्जों में समेटने के बजाय उसकी ज़िंदगी की दास्ताँ ही उसकी मोहब्बत का इज़हार करने लगती है......

आज इस दिन के बहाने अवसर है शब्दों से परे हकीकत में छुपे उस प्रेम को पहचानने का... और उस पर मोहब्बत का इज़हार कर ज़िंदगी में बसा लेने का ...इससे पहले कि वक़्त अपना रुख बदल दे  और ज़िंदगी उसी की मोहताज़ हो जाये जिसने आपके ख्वाबों में राज किया ... रात भर जगाया...!
इसलिए मौका है आज ,,,,, वरना  यही दिन हर वर्ष आएगा, मुंह चिढ़ाकर एक कसक लिए ---
 और धीरे से कान में फुसफुसायेगा -  '' तुम कितने उल्लू थे, बस इतनी सी बात नहीं कह पाए...'
वरना ज़िंदगी कितनी हसीन होती ...... ख्वाबों जैसी !!!!!


दिल से भेजिए दिमाग को सन्देश...

‘’जो आप करना चाहते हैं, सबसे पहले अपने दिल से उसकी इजाजत लीजिए. और अगर दिल की हरी झंडी मिल जाये तो फिर दिमाग को एक नोटिस जारी करिये... और हर रोज उस नोटिस पर की गई कार्रवाई का विवरण लेते रहिये....दुहराते रहिये –yes I can!!!! और फिर दिमाग शरीर को संचालित कर आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देगा. बस इतना सिंपल सा फॉर्मूला है सक्सैस का...’’
इलाहाबाद के विज्ञान परिषद में शहर भर से आये सेकडों युवाओं को सफलता का मंत्र दे गए देश के मशहूर मोटिवेटर अत्रिशेखर. ‘चिरांगन’ द्वारा आयोजित सेमिनार में कई स्वप्नीली आँखे अपने सपनों की सीढियाँ लेकर विदा हुई. yes I can! मूल मन्त्र पर सफलता की चर्चा में न सिर्फ युवा शामिल थे बल्कि कई वरिष्ठ लोग भी सफलता की कुंजी लेने आये थे.

बताये सफलता के आयाम..
देश के प्रसिद्ध पब्लिक स्पीकर अत्रिशेखर ने छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से जीवन की कठिनाइयों कीई तह तक जाने की भरपूर कोशिश की. आखिर कहाँ कमी रह जाती है, कि हम सफलता के करीब पहुंचकर भी सफलता हमारे हाथों से फिसल जाती है. हमारी मेहनत और लगन एक पल में धाराशाही हो जाती है. और फिर हम उसका शोक मनाने लगते हैं,
quit करना आसान है. जबकि स्थितियों का सामना करते हुए सीखते रहना कठिन है. अत्रिशेखर जी के अनुसार ‘’जब आप अपने लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं, तब आप सफलता की ओर कदम बढ़ा देते हैं, सपने सब देखते हैं, मगर उन्हें पूरा करने के लिए deadline जिसने निर्धारित कर ली, वह सफल होना शुरू हो जायेगा..’’
युवा भ्रमित हो रहा है जिसे सही दिशा देने की सबसे ज्यादा जरुरत है. क्योंकि युवा ही देश का भविष्य हैं.

 इस आयोजन के सहयोगियों में knowledge group, The institute , देशी रसोई, ok next तथा प्रिंट पार्टनर i-next, रेडियो पार्टनर red FM, और online partner के रूप में  Allahabad post शामिल रहे.


‘चिरांगन’ एन.जी.ओ के इस आयोजन में मुख्य अथिति के रूप में सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज के कोर्स कॉर्डिनेटर धनंजय चौपडा ने अत्रिशेखर जी को स्मृति-चिन्ह देकर सम्मानित किया.

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

एक दसक में बदल दी दुनियां.....

 फेसबुक ने आज अपने दस वर्ष पूरे कर लिए. 1.2 बिलियन यूजर्स के साथ सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक 4 फरवरी 2004 को शुरुआत की थी. समर्पित है जन्मदिन उपहार स्वरुप एक चिटठा--- 

dear facebook, 
आज तुम्हारा दसवां जन्मदिन है, यानी आज तुम दस साल की हो गई हो! आज तुम्हें राजकुमार कहूँ या राजकुमारी बड़ा कन्फ्यूज हूँ... खैर मैं इसमें नहीं उलझूंगा. वाकई तुमने छोटी सी उम्र में ही कई अजूबे  कर दिए, जैसे तुम्हारे जनक ने किए हैं. वो भी क्या कमाल का आदमी है ना, 19 साल का एक ऐसा लड़का, जिसके होठों के ऊपर मूंछ तक ठीक से नही पनपी थी, इतनी बड़ी बेवसाईट का निर्माण कर दिया. वैसे तुम्हें बनाने में मार्क जुकरबर्ग के अलावा डस्टिन मोस्कोविच, क्रिस ह्यूग्स और एदुआर्दो सेवेरिन भी शामिल थे, मगर जूनून और जिद मार्क की थी. 


4 फरवरी 2004 को हार्वर्ड के एक छोटे से कमरे जन्म के समय तुम्हारा नाम the facebook था. 2005 में 2 लाख डॉलर में फेसबुक डॉट कॉम का डोमेन खरीदने के साथ ही तुम्हारा नाम बदलकर सिर्फ facebook कर दिया गया. और तब से आज तक दुनियां तुम्हें इसी नाम से जानती है.
dear facebook, 
तुमने इस एक दसक में विश्व भर में कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं तो कुछ सतही तौर पर सामाजिक परिवर्तन किये हैं. खास कर भारत जैसे संस्क्रतिवादी देश में तुमने ऐसे परिवर्तन किये हैं जो न तो अपनाते बन रहे है और ना ही ठुकराते. मसलन मुंह में भरे गरम दूध वाली स्थिति है जो न तो निगलते बनता है और ना ही उगलते... आज भी तुम्हारी जमकर आलोचना होती है, देश के बड़े-बड़े आलोचक तुम्हारे वजूद से भारतीय युवाओं को गर्त में जाता देख रहे हैं, बड़ी-बड़ी बहसें होती हैं कि फेसबुक ने भारतीय नयी पीढ़ी को संस्कारहीन बना दिया है. बच्चों को माता-पिताओं से दूर कर दिया,..इस गंभीर आलोचना को तुम्हारे ही वाल पे पोस्ट किया जाता है. मैं पूछता हूँ समय ही कहाँ है माता-पिताओं के पास बच्चों के लिए... अरे एक तुम ही तो हो जो उनकी हर बात बिना डांटे सुन लेती हो. वरना घर में तो बड़े लोग बच्चों पर रोब ज़माने के लिए ही पैदा हुए हैं. खैर! तुम्हारे इस अभियान के बाद कुछ समझदार परिजनों ने अपने बच्चों के लिए वक़्त निकलना शुरू किया है.

dear facebook, 
दरअसल तुमने लोगों को एक नयी दुनियां दी है, जहां उनका एक पर्सनल घर है, चाहे वास्तविक जिंदगी में सर पर छत हो ना हो. तुम्हारी दुनियां में आते ही सबको एक नए घर की चाबी थमा दी जाती है, जिसमे बिना उसकी इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है.. चाहे वो उसके पिताजी ही क्यों न हों. पहले नॉक करना होगा और वो चाहेगा तो दरवाजा खोलेगा. नहीं तो not now बोल देगा और पिताजी को सुनायी भी नहीं देगा. और यही आज कि पीढ़ी की सबसे बड़ी जरुरत है, जहां उनका एक लोक्ड रूम हो... और अपनी मर्जी के मुताबिक रह सकें. आज हर किसी को अपने पर्सनल सीक्रेट की सिक्यूरिटी चाहिए, जो तुमने आते ही थमा दी. 


dear facebook, 
            सबसे बड़ा काम जो तुमने किया वो ये कि सबके लिए एक अभिव्यक्ति का मंच तैयार किया, जहां जावेद अख्तर भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं और उसी वाल पे एक चाय वाला भी अपनी अटपटी शायरी लिख देता है. अभिव्यक्ति का ये मंच दुनिया को एक कतार में खड़ा करता है.. जहां कोई भी अपनी बात कह सकता है और उसे पढ़ने वाले सिर्फ पसंद कर सकते है, नापसंद नहीं.!
जिसकी कोई नहीं सुनता, उसका तुम्हारे वाल पे स्वागत है. जिसको कोई नहीं पूछता उससे तुम हमेशा पूछती रहती हो- what's on your mind? 

dear facebook,
      गोल दुनियां को जब तुमने सपाट बनाया तो भारत कुछ पहलुओं पर सहम सा गया.. सबसे बडी तकरार रिश्तों में आयी.. रिश्तों की जंजीरें, जिनमे आख़िरी सांस तक जकडन रहती थी, आज एक पल में hii से शुरू हुआ एक रिश्ता आग में जलती हुई रस्सी की तरह ऐंठ खाता हुआ, जिसमे एक पल बहुत कसाव रहता है-इतनी मजबूती कि जीना यहाँ और कह दो तो बस मरना भी यहाँ...., दूसरे पल ही bye में तब्दील होकर राख बन जाता है. तुमने रिश्ते बनाने की इतनी आजादी दे दी कि लोग भूल गए कि रिश्ते होते क्या हैं, इतने विकल्प हैं कि एक ने कुछ कहा तो अगले 255 फ्रेंडलिस्ट में मौजूद हैं, जो आपके रिप्लाई का wait कर रहे हैं. और इस अप्रत्यक्ष बातचीत ने आमने-सामने की मान-मर्यादा टाक पर रख दी है. मसलन आप सामने नहीं हैं तो जो चाहते हैं कह सकते हैं..


......अब तक पैरों में जाने वाले हाथ तुमने सीधे हाथों में मिला दिए हैं.. और ठीक भी है हाथ, हाथों में ही अच्छे लगते हैं. मगर इस बात को आज तक मेरे देश के गुरु जी नहीं समझ पाए थे. और जब तुमने उनके अस्तित्व पर ही ये शर्त लगा दी तो फिर वे मजबूरन खुद भी इसकी वकालत करने लगे...
यही हाथ एक भारत का आम युवा अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा से मिला सकता है.. तो वो चौराहे वाला रामू सीधे अमिताभ बच्चन से यही दोस्ती का हाथ बढाता है. तुमने सारे रिश्ते खत्म करके उन्हें सिर्फ एक डोर में पिरो दिया और वो है 'दोस्ती' की अटूट डोर.....
एकमात्र ऐसी दुनिया जहां हर शख्स एक-दूसरे का दोस्त है..

तो मेरी प्यारी दोस्त तुम्हें तुम्हारे दसवें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ... तुम हजारों साल जियो...!

दिनांक-                                                     तुम्हारा 'दोस्त' 
04 फरवरी 2014                                               -'विनय'

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

मौनी अमावस्या पर लाखो ने लगाई संगम में डुबकी ..

संगम तट से.....         
मकर संक्रांति पर्व से शुरू हुए माघ मेले में आज महापर्व मौनी अमावस्या का महा-स्नान है. देश-विदेश से लाखों लोग संगम की ओर आवागमन कर रहे हैं. प्रशासन के पूर्वानुमान के अनुसार मौनी अमावस्या के पावन पर्व पर अस्सी लाख श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाएंगे. विशाल मेला क्षेत्र श्रद्धालुओं से ठसाठस भरा नज़र आ रहा है. लाखों आ रहे हैं तो हजारों अपने-अपने घरों को वापस लौट रहे हैं. इन्हीं महा-स्नान पर्वों पर संगम दुनियां का सबसे ज्यादा जनसँख्या वाला स्थान बन जाता है. जहां विभिन्न देशों, प्रदेशों, क्षेत्रों, गांवों और कस्बों से लोग आकर एक साथ संगम किनारे एकत्रित होते हैं. जहां हजारों संस्कृतियाँ और सभ्यताएं एक साथ संगम के जल में डुबकी लगती हैं. और हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लाखों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ गाते-बजाते, खाते-पीते, नहाते-धोते हैं. सचमुच ये दुनियां का ऐसा एकमात्र अनोखा स्थान है जहां मानवता का महा-संगम होता है.


इतने बड़े मेले का ‘क्राउड मेनेजमेंट’ भी प्रशासन के पसीने छुटा देता है. मेले के सफल आयोजन के लिए सच में मेला प्रशासन की व्यवस्था काबिले तारीफ़ है. और इसीलिये संगम पर दुनियां का सबसे बड़ा ‘क्राउड मेनेजमेंट’ दुनियां के लिए एक मिसाल बन जाता है. आज भी मेला प्रशासन मुस्तैद है. लोगों के मेले में प्रवेश से लेकर भ्रमण, स्नान तथा ठहरने की समुचित व्यवस्था करने के साथ-साथ उनके मेला क्षेत्र छोड़कर सुरक्षित अपने-अपने गंतव्य को रवाना होने तक सारी व्यवस्था का जिम्मा मेला प्रशासन का ही है. मसलन अगर आप मेला क्षेत्र में हैं तो आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी मेला प्रशासन की है. और इस जिम्मेदारी को मेला प्रशासन ने जिस ढंग से निभाया है- अपने आप में एक मिसाल है.! 



माघ मेले में शांति बनाये रखने और हर स्थति पर तत्काल नियंत्रण पाने हेतु मेला क्षेत्र को तीन-जोन तथा पांच-सेक्टर में विभाजित किया गया है. प्रत्येक सेक्टर में अलग-अलग कई रैंक के पदाधिकारिओं की नियुक्ति की गयी है, जो हर समय मेला-प्रभारी मुख्यालय से संपर्क में रहते हैं. कोई भी अप्रिय घटना होने पर मुख्यालय सभी सेक्टरों को अलर्ट जारी कर देता है. प्रभारी मुख्यालय से ही मेला क्षेत्र में आये हुए श्रद्धालुओं को दिशानिर्देश जारी किये जाते है जो पूरे मेला क्षेत्र में लगे लाउड स्पीकरों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचते हैं.


कड़ी सुरक्षा व्यवस्था–

इतनी भारी संख्या में मौजूद भीड़ की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं. ए.टी.एस. की तीन टीमें, दो कंपनी आर.ए.एफ. तथा नौ कंपनी पी.ए.सी, पूरे मेला क्षेत्र में चप्पे-चप्पे पर कड़ी नज़र रखेंगे. वहीं जल पुलिस के 37 गोताखोर स्नान घाटों पर सुरक्षित स्नान हेतु तैनात किये गए हैं. विशाल मेला क्षेत्र में 1287 पुलिस कांस्टेबल, 190 फायर पुलिस के जवान, रेडियो पुलिस के 115 जवानों के साथ ही महिला पुलिस की वीरांगनाएं भी लगातार मुस्तैद रहेंगी. 


 मौनी अमावस्या पर स्नानार्थियों की भारी संख्या को ध्यान में रखते हुए मेला प्रशासन ने १२ स्नान घाट तैयार किये हैं. जिससे आने वाले श्रद्धालुओं को संगम में डुबकी लगाने में विलम्ब तथा भीडभाड जैसी किसी परेशानी का सामना न करना पड़े. घाटों पर बेरीकेटिंग कर स्नान के लिए एक सीमा रेखा बना दी गई है जिससे स्नान के दौरान कोई डूबने न पाए. इसके साथ ही स्नान घाटों के आसपास अस्थाई चेंजिंग रूम भी बनाये गए हैं. जिससे स्नान के बाद महिलाओं को खासी दिक्कतों का सामना न करना पड़े. स्नान घाटों के किनारे बालू अधिक होने के कारण  भारी मात्रा में पुआल बिछा दी गई है.  


मेले में आने वाले भक्तों को कड़ी ठण्ड से बचाव के लिए मेला क्षेत्र में ४२५ टेंट के अस्थाई रैन बसेरों की स्थापना की गई है. जिनमें गर्म कपड़ों के साथ ठहरने की समुचित व्यवस्था की गई है. और साथ ही मेला क्षेत्र में मुख्य चौराहों तथा भीड़ वाले स्थानों पर अलाव जलाये जा रहे हैं. 
किसी भी आपातकालीन हालात से निपटने के लिए भी प्रशासन ने कमर कस ली है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए मेले में २६ एम्बुलेंस २४ घंटे लोगों की सेवा में तत्पर हैं, वहीं २२ चिकित्सालय मेला क्षेत्र में ही स्थापित किये गए है, जिनमे प्राथमिक चिकित्सालयों के साथ ही आयुर्वेद और होम्योपेथिक चिकित्सालय भी शामिल हैं.... 

......तो आप भी पधारिये संगम तट पर. और पावन गंगा-यमुना-सरस्वती के जल में डुबकी लगाकर खुद को पवित्र करिये. और साथ ही इस मेले में विविधताओं के संगम के अनूठे दृश्यों से रूबरू होइए और मेरा यकीन मानिये आप भी डूब जायेंगे इस भक्ति के संगम में- तन से,,, मन से ... धन से ..! 
पधारो संगम तीर..............

 my this write up is publish on a news website.. http://dhamakaupdate.com/?p=1950

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

हर शाम सुरों का संगम



जहाँ सुर सात नहीं, सात हजार से लगते हैं

जहां मधुर ध्वनियों का संगम एक ऐसा संगीत आपके कानों में पिरोता है कि रोम-रोम खिल उठता है, एक सुकून, शांति में मन का पंछी अनायास ही गुनगुनाने लगता है. जहां हजारों भिन्न-भिन्न गीत मिलकर एक नया संगीत बनाते हैं. संगीत का ऐसा संगम दुनियां में और कहीं नहीं मिल सकता है. अनगिनत ध्वनिओं से बना साज़ हमारे मन को छू जाता है,. ऐसा ही एक शाम का सफर माघ मेला में संगम पर ये बता गया कि यहाँ संगम सिर्फ नदियों का नहीं है बल्कि इस जगत की संस्क्रतिओं, परम्पराओं के साथ ही संगीत का भी होता है.

अगर तड़क-भड़क गाने-बजाने से ऊब गये हों, तो गुजारिए एक शाम संगम तट पर, जहाँ मंद-मंद स्वर हवा में घुल कर बहते हैं. एक ऐसा संगीत जो ह्रदय में समाकर धडकनों से गुफ्तगू करता है. रोजमर्रा की भागदौड और शोर-शराबे से घायल कान की परतों पर मरहम लगाता है संगीत यहाँ. कहीं से बांसुरी की सुरीली धुन तो कहीं खनकता इकतारा, सितार की झनझनाती डोर और किसी भजन की पंक्तियाँ, जब एक साथ घुलते हैं तो जैसे कानों में रस घोल देते हैं, बस झूमने को मन करता है.

माघ मेले में मेला प्रशासन की ओर से पूरे मेला क्षेत्र में लाउडस्पीकर लगाये गए हैं, जिनका प्रयोग दिनभर तो खोया-पाया उद्घोषणा के लिए होता है. मगर शाम होते ही शुरू होता है मधुर भक्ति संगीत. साथ ही मेले में लगे शिविरों के अपने-अपने स्पीकर हैं. इन सैकड़ों शिविरों का भिन्न-भिन्न संगीत जब पूरे मेले के संगीत में घुलता है तो फिर संगीत ‘सारेगामा’ के बंधनों से मुक्त होकर स्वछन्द खिलखिलाता है.
माघ-मेले में प्रवेश करते ही आप के साथ-साथ सफर करता है एक सुरीला संगीत. जिसकी आहट भी नहीं होती आपको. आप चलते रहिये, संगीत धुन बदल-बदल कर आपके साथ-साथ  चलता रहेगा. इस संगीत की ये खासियत है कि न तो आपका ध्यान खींचेगा और न हीं आपको अकेला होने देगा.

जहां लाउडस्पीकर अपने नाम के अर्थ बदल देते हैं, उनकी आवाजें कानों से टकराती नहीं हैं बल्कि न जाने कब कानों से अंतःकरण तक उतर जाती हैं. और ये अद्भुत ही है कि जहां हजारों लाउडस्पीकर लगे हैं और शोर नहीं है. मेला प्रशासन के सख्त निर्देशानुसार लाउडस्पीकर एक निश्चित ध्वनि तीव्रता में ही बजाये जा सकते हैं.
किसी शिविर से ओउम के उच्चारण की ध्वनि, तो किसी पंडाल से सामूहिक वन्दना, तो कहीं से लोक संगीत की धुन, और कहीं आरती की जय-जयकार, मन के तारों को झनझना जाती है.
हर पंडाल अपने में विविधता समोए हुए है, हर शिविर से अपनी एक अनोखी धुन गूंजती है. कहीं प्रवचन में डूबे भक्त, तो कहीं भजनों पर तालियों का साज देते श्रद्धालु... कहीं आलाप में सुरों से खेलता गायक तो कहीं उँगलियों से सितार को छेड़ता वादक. अपनी सुध खोकर नाचते-गाते-झूमते स्त्री-पुरुष.... इस सफर में मन करता है बस यहीं ठहर जाएँ.... फिर आगे बढ़े तो सोचा यहीं.... हर पंडाल के दरवाजे पर कदम ठिठक से जाते हैं. और ऐसे ही करते-करते न जाने कब संगम पहुँच जाते हैं.

दुनियां में इतनी विविधताओं का संगम सिर्फ यहीं होता है, और हजारों सुर एक साथ मिल कर बनाते हैं- एक नया सुर. एक नया साज, और एक नयी धुन गुनगुनाती है. और जब ये सारा संगीत एक धागे में मोतिओं की तरह पिरोया जाता है तो स्वर्ग संगम पर नज़र आता है.

तो आइये चलें ऊब से सुकून की ओर... शोर शराबे से मधुरता की ओर... आओ चलें संगम की ओर .!