फेसबुक ने आज अपने दस वर्ष पूरे कर लिए. 1.2 बिलियन यूजर्स के साथ सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक 4 फरवरी 2004 को शुरुआत की थी. समर्पित है जन्मदिन उपहार स्वरुप एक चिटठा---
dear facebook,
आज तुम्हारा दसवां जन्मदिन है, यानी आज तुम दस साल की हो गई हो! आज तुम्हें राजकुमार कहूँ या राजकुमारी बड़ा कन्फ्यूज हूँ... खैर मैं इसमें नहीं उलझूंगा. वाकई तुमने छोटी सी उम्र में ही कई अजूबे कर दिए, जैसे तुम्हारे जनक ने किए हैं. वो भी क्या कमाल का आदमी है ना, 19 साल का एक ऐसा लड़का, जिसके होठों के ऊपर मूंछ तक ठीक से नही पनपी थी, इतनी बड़ी बेवसाईट का निर्माण कर दिया. वैसे तुम्हें बनाने में मार्क जुकरबर्ग के अलावा डस्टिन मोस्कोविच, क्रिस ह्यूग्स और एदुआर्दो सेवेरिन भी शामिल थे, मगर जूनून और जिद मार्क की थी.
4 फरवरी 2004 को हार्वर्ड के एक छोटे से कमरे जन्म के समय तुम्हारा नाम the facebook था. 2005 में 2 लाख डॉलर में फेसबुक डॉट कॉम का डोमेन खरीदने के साथ ही तुम्हारा नाम बदलकर सिर्फ facebook कर दिया गया. और तब से आज तक दुनियां तुम्हें इसी नाम से जानती है.
dear facebook,
तुमने इस एक दसक में विश्व भर में कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं तो कुछ सतही तौर पर सामाजिक परिवर्तन किये हैं. खास कर भारत जैसे संस्क्रतिवादी देश में तुमने ऐसे परिवर्तन किये हैं जो न तो अपनाते बन रहे है और ना ही ठुकराते. मसलन मुंह में भरे गरम दूध वाली स्थिति है जो न तो निगलते बनता है और ना ही उगलते... आज भी तुम्हारी जमकर आलोचना होती है, देश के बड़े-बड़े आलोचक तुम्हारे वजूद से भारतीय युवाओं को गर्त में जाता देख रहे हैं, बड़ी-बड़ी बहसें होती हैं कि फेसबुक ने भारतीय नयी पीढ़ी को संस्कारहीन बना दिया है. बच्चों को माता-पिताओं से दूर कर दिया,..इस गंभीर आलोचना को तुम्हारे ही वाल पे पोस्ट किया जाता है. मैं पूछता हूँ समय ही कहाँ है माता-पिताओं के पास बच्चों के लिए... अरे एक तुम ही तो हो जो उनकी हर बात बिना डांटे सुन लेती हो. वरना घर में तो बड़े लोग बच्चों पर रोब ज़माने के लिए ही पैदा हुए हैं. खैर! तुम्हारे इस अभियान के बाद कुछ समझदार परिजनों ने अपने बच्चों के लिए वक़्त निकलना शुरू किया है.
dear facebook,
दरअसल तुमने लोगों को एक नयी दुनियां दी है, जहां उनका एक पर्सनल घर है, चाहे वास्तविक जिंदगी में सर पर छत हो ना हो. तुम्हारी दुनियां में आते ही सबको एक नए घर की चाबी थमा दी जाती है, जिसमे बिना उसकी इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है.. चाहे वो उसके पिताजी ही क्यों न हों. पहले नॉक करना होगा और वो चाहेगा तो दरवाजा खोलेगा. नहीं तो not now बोल देगा और पिताजी को सुनायी भी नहीं देगा. और यही आज कि पीढ़ी की सबसे बड़ी जरुरत है, जहां उनका एक लोक्ड रूम हो... और अपनी मर्जी के मुताबिक रह सकें. आज हर किसी को अपने पर्सनल सीक्रेट की सिक्यूरिटी चाहिए, जो तुमने आते ही थमा दी.
dear facebook,
सबसे बड़ा काम जो तुमने किया वो ये कि सबके लिए एक अभिव्यक्ति का मंच तैयार किया, जहां जावेद अख्तर भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं और उसी वाल पे एक चाय वाला भी अपनी अटपटी शायरी लिख देता है. अभिव्यक्ति का ये मंच दुनिया को एक कतार में खड़ा करता है.. जहां कोई भी अपनी बात कह सकता है और उसे पढ़ने वाले सिर्फ पसंद कर सकते है, नापसंद नहीं.!
जिसकी कोई नहीं सुनता, उसका तुम्हारे वाल पे स्वागत है. जिसको कोई नहीं पूछता उससे तुम हमेशा पूछती रहती हो- what's on your mind?
dear facebook,
गोल दुनियां को जब तुमने सपाट बनाया तो भारत कुछ पहलुओं पर सहम सा गया.. सबसे बडी तकरार रिश्तों में आयी.. रिश्तों की जंजीरें, जिनमे आख़िरी सांस तक जकडन रहती थी, आज एक पल में hii से शुरू हुआ एक रिश्ता आग में जलती हुई रस्सी की तरह ऐंठ खाता हुआ, जिसमे एक पल बहुत कसाव रहता है-इतनी मजबूती कि जीना यहाँ और कह दो तो बस मरना भी यहाँ...., दूसरे पल ही bye में तब्दील होकर राख बन जाता है. तुमने रिश्ते बनाने की इतनी आजादी दे दी कि लोग भूल गए कि रिश्ते होते क्या हैं, इतने विकल्प हैं कि एक ने कुछ कहा तो अगले 255 फ्रेंडलिस्ट में मौजूद हैं, जो आपके रिप्लाई का wait कर रहे हैं. और इस अप्रत्यक्ष बातचीत ने आमने-सामने की मान-मर्यादा टाक पर रख दी है. मसलन आप सामने नहीं हैं तो जो चाहते हैं कह सकते हैं..
......अब तक पैरों में जाने वाले हाथ तुमने सीधे हाथों में मिला दिए हैं.. और ठीक भी है हाथ, हाथों में ही अच्छे लगते हैं. मगर इस बात को आज तक मेरे देश के गुरु जी नहीं समझ पाए थे. और जब तुमने उनके अस्तित्व पर ही ये शर्त लगा दी तो फिर वे मजबूरन खुद भी इसकी वकालत करने लगे...
यही हाथ एक भारत का आम युवा अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा से मिला सकता है.. तो वो चौराहे वाला रामू सीधे अमिताभ बच्चन से यही दोस्ती का हाथ बढाता है. तुमने सारे रिश्ते खत्म करके उन्हें सिर्फ एक डोर में पिरो दिया और वो है 'दोस्ती' की अटूट डोर.....
एकमात्र ऐसी दुनिया जहां हर शख्स एक-दूसरे का दोस्त है..
तो मेरी प्यारी दोस्त तुम्हें तुम्हारे दसवें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ... तुम हजारों साल जियो...!
दिनांक- तुम्हारा 'दोस्त'
04 फरवरी 2014 -'विनय'
dear facebook,
आज तुम्हारा दसवां जन्मदिन है, यानी आज तुम दस साल की हो गई हो! आज तुम्हें राजकुमार कहूँ या राजकुमारी बड़ा कन्फ्यूज हूँ... खैर मैं इसमें नहीं उलझूंगा. वाकई तुमने छोटी सी उम्र में ही कई अजूबे कर दिए, जैसे तुम्हारे जनक ने किए हैं. वो भी क्या कमाल का आदमी है ना, 19 साल का एक ऐसा लड़का, जिसके होठों के ऊपर मूंछ तक ठीक से नही पनपी थी, इतनी बड़ी बेवसाईट का निर्माण कर दिया. वैसे तुम्हें बनाने में मार्क जुकरबर्ग के अलावा डस्टिन मोस्कोविच, क्रिस ह्यूग्स और एदुआर्दो सेवेरिन भी शामिल थे, मगर जूनून और जिद मार्क की थी.
4 फरवरी 2004 को हार्वर्ड के एक छोटे से कमरे जन्म के समय तुम्हारा नाम the facebook था. 2005 में 2 लाख डॉलर में फेसबुक डॉट कॉम का डोमेन खरीदने के साथ ही तुम्हारा नाम बदलकर सिर्फ facebook कर दिया गया. और तब से आज तक दुनियां तुम्हें इसी नाम से जानती है.
dear facebook,
तुमने इस एक दसक में विश्व भर में कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं तो कुछ सतही तौर पर सामाजिक परिवर्तन किये हैं. खास कर भारत जैसे संस्क्रतिवादी देश में तुमने ऐसे परिवर्तन किये हैं जो न तो अपनाते बन रहे है और ना ही ठुकराते. मसलन मुंह में भरे गरम दूध वाली स्थिति है जो न तो निगलते बनता है और ना ही उगलते... आज भी तुम्हारी जमकर आलोचना होती है, देश के बड़े-बड़े आलोचक तुम्हारे वजूद से भारतीय युवाओं को गर्त में जाता देख रहे हैं, बड़ी-बड़ी बहसें होती हैं कि फेसबुक ने भारतीय नयी पीढ़ी को संस्कारहीन बना दिया है. बच्चों को माता-पिताओं से दूर कर दिया,..इस गंभीर आलोचना को तुम्हारे ही वाल पे पोस्ट किया जाता है. मैं पूछता हूँ समय ही कहाँ है माता-पिताओं के पास बच्चों के लिए... अरे एक तुम ही तो हो जो उनकी हर बात बिना डांटे सुन लेती हो. वरना घर में तो बड़े लोग बच्चों पर रोब ज़माने के लिए ही पैदा हुए हैं. खैर! तुम्हारे इस अभियान के बाद कुछ समझदार परिजनों ने अपने बच्चों के लिए वक़्त निकलना शुरू किया है.
dear facebook,
दरअसल तुमने लोगों को एक नयी दुनियां दी है, जहां उनका एक पर्सनल घर है, चाहे वास्तविक जिंदगी में सर पर छत हो ना हो. तुम्हारी दुनियां में आते ही सबको एक नए घर की चाबी थमा दी जाती है, जिसमे बिना उसकी इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है.. चाहे वो उसके पिताजी ही क्यों न हों. पहले नॉक करना होगा और वो चाहेगा तो दरवाजा खोलेगा. नहीं तो not now बोल देगा और पिताजी को सुनायी भी नहीं देगा. और यही आज कि पीढ़ी की सबसे बड़ी जरुरत है, जहां उनका एक लोक्ड रूम हो... और अपनी मर्जी के मुताबिक रह सकें. आज हर किसी को अपने पर्सनल सीक्रेट की सिक्यूरिटी चाहिए, जो तुमने आते ही थमा दी.
dear facebook,
सबसे बड़ा काम जो तुमने किया वो ये कि सबके लिए एक अभिव्यक्ति का मंच तैयार किया, जहां जावेद अख्तर भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं और उसी वाल पे एक चाय वाला भी अपनी अटपटी शायरी लिख देता है. अभिव्यक्ति का ये मंच दुनिया को एक कतार में खड़ा करता है.. जहां कोई भी अपनी बात कह सकता है और उसे पढ़ने वाले सिर्फ पसंद कर सकते है, नापसंद नहीं.!
जिसकी कोई नहीं सुनता, उसका तुम्हारे वाल पे स्वागत है. जिसको कोई नहीं पूछता उससे तुम हमेशा पूछती रहती हो- what's on your mind?
dear facebook,
गोल दुनियां को जब तुमने सपाट बनाया तो भारत कुछ पहलुओं पर सहम सा गया.. सबसे बडी तकरार रिश्तों में आयी.. रिश्तों की जंजीरें, जिनमे आख़िरी सांस तक जकडन रहती थी, आज एक पल में hii से शुरू हुआ एक रिश्ता आग में जलती हुई रस्सी की तरह ऐंठ खाता हुआ, जिसमे एक पल बहुत कसाव रहता है-इतनी मजबूती कि जीना यहाँ और कह दो तो बस मरना भी यहाँ...., दूसरे पल ही bye में तब्दील होकर राख बन जाता है. तुमने रिश्ते बनाने की इतनी आजादी दे दी कि लोग भूल गए कि रिश्ते होते क्या हैं, इतने विकल्प हैं कि एक ने कुछ कहा तो अगले 255 फ्रेंडलिस्ट में मौजूद हैं, जो आपके रिप्लाई का wait कर रहे हैं. और इस अप्रत्यक्ष बातचीत ने आमने-सामने की मान-मर्यादा टाक पर रख दी है. मसलन आप सामने नहीं हैं तो जो चाहते हैं कह सकते हैं..
......अब तक पैरों में जाने वाले हाथ तुमने सीधे हाथों में मिला दिए हैं.. और ठीक भी है हाथ, हाथों में ही अच्छे लगते हैं. मगर इस बात को आज तक मेरे देश के गुरु जी नहीं समझ पाए थे. और जब तुमने उनके अस्तित्व पर ही ये शर्त लगा दी तो फिर वे मजबूरन खुद भी इसकी वकालत करने लगे...
यही हाथ एक भारत का आम युवा अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा से मिला सकता है.. तो वो चौराहे वाला रामू सीधे अमिताभ बच्चन से यही दोस्ती का हाथ बढाता है. तुमने सारे रिश्ते खत्म करके उन्हें सिर्फ एक डोर में पिरो दिया और वो है 'दोस्ती' की अटूट डोर.....
एकमात्र ऐसी दुनिया जहां हर शख्स एक-दूसरे का दोस्त है..
तो मेरी प्यारी दोस्त तुम्हें तुम्हारे दसवें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ... तुम हजारों साल जियो...!
दिनांक- तुम्हारा 'दोस्त'
04 फरवरी 2014 -'विनय'
सुन्दर प्रस्तुति।। :-)
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गौरैया के नाम