ताकि मुस्कुरा उठे कन्हैया
- कुमार विनय
आ रहा है माखन चुराने
आ रहा है माखन चुराने
कंकदिया से मटकी चटकाने
ग्वाल वाल संग गे चराने
गोपियों संग रस रचाने
बंसी बजाने कदम्ब की छैयां
वो नटखट , नटवर कृष्ण कन्हैया ….
आओ कृष्ण के जीवन से रूबरू हो लें। फिर मौका मिला न मिला , आज कुछ रंग चुरा ले ऐसे जीवन से जिसमे हजारों रंग भरे हैं। और संवार ले अपना जीवन ,, करें एक नयी शुरुआत।
जीवन क्या है - सांस दर सांस…. उम्र के दिए हर दिन को परिस्थितियों के अनुसार जीते रहना। उन परिस्थितियों के साथ जिन्हें न तो हम पसंद करते हैं और न ही बदलना चाहते। बस जैसा है वैसा जिए जा रहे हैं। अगर गौर करें तो इन्ही परिस्थितियों के साथ समझौते में हमारा मासूम बचपन कब अपनी मासूमियत खोकर एक गंभीर युवा बन जाता है , पता ही नहीं चलता। और फिर बाकी का जीवन उसी गंभीरता को गहरे रंग देने में निकल जाता है। जब एक उम्र बीत जाती है , तब हमें उस मासूम चेहरे के पीछे एक मासूम चेहरा सिसकता हुआ नज़र आता है , जिस की मासूमियत… चंचलता… और सादगी को नज़र अंदाज़ कर मुखोटा लगाये जीते रहे । … खाना -कमाना और मर जाना - कुछ साल के जीवन का लेखा-जोखा तो हो सकता है , ऐसी ज़िन्दगी किसी मायने में मुकम्मल नहीं होती।
खैर…. ज़िन्दगी को कैसे जिए की उसकी अर्थवत्ता बनी रहे ? हमारी सूरत सीरत और सोच कैसी हो ?
तो आओ ! कृष्ण से कुछ खुबसूरत रंग मांग लें और करें शुरुआत जीवन जीने की। आओ करें कृष्ण जैसा निश्छल प्रेम…बचाएं किसी द्रोपदी का चीर…. करें किसी अर्जुन का मार्गदर्शन… आओ याद करें किसी बचपन के मित्र सुदामा को.……प्यार से मांगो जरा सा माखन अपनी मैया से….
और खुद में रोते उस मासूम बच्चे को हंसा दो…. वो हंसेगा और देखना - उसकी खिलखिलाहट से आपकी तकलीफ दूर भाग जाएगी और यकायक फूट पड़ेगी मासूम सी मुस्कराहट….ऐसा यक़ीनन होगा। यक़ीनन कृष्ण आज जन्म लेते ही मुस्कुरा उठेंगे।
तो नयी शुरुआत मानते हुए गुलज़ार साहब के इस खूबसूरत शेर के साथ संकल्प लीजिये। ….
एक रोज ज़िन्दगी से रूबरू आ बैठे
मेरा चेहरा देखकर ज़िन्दगी ने कहा -मैं तुम्हारी जुड़वां हूँ ,
मुझसे नाराज़ न हुआ करो…
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