एक दौर गुजर गया है ..
एक साथ पढते-पढते
और अब मैंने बंद कर दी हैं सारी किताबें
सोचा है इस बार,
मनोविज्ञान नहीं
बस मन पढ़ लूं तुम्हारा ....
अब तक पढ़े हैं, तुम्हारे लिखे हुए अक्षर ...
इस बार पढ़ लूं , जिसे अक्सर लिखते -लिखते रुक गई हो तुम .|
ताकि जान सकूं 'ना ' में छुपी 'हाँ' को ,
गुस्से में दबे प्यार को ,
और खुद्दारी में समाई प्यास को ......
क्योंकि, तुम पर कविता लिखना इतना आसान तो नहीं है |
एक साथ पढते-पढते
और अब मैंने बंद कर दी हैं सारी किताबें
सोचा है इस बार,
मनोविज्ञान नहीं
बस मन पढ़ लूं तुम्हारा ....
अब तक पढ़े हैं, तुम्हारे लिखे हुए अक्षर ...
इस बार पढ़ लूं , जिसे अक्सर लिखते -लिखते रुक गई हो तुम .|
खूब हुई है कहासुनी ...
इसबार सुन लूं 'अनकही '...|ताकि जान सकूं 'ना ' में छुपी 'हाँ' को ,
गुस्से में दबे प्यार को ,
और खुद्दारी में समाई प्यास को ......
क्योंकि, तुम पर कविता लिखना इतना आसान तो नहीं है |