जहाँ सुर सात नहीं, सात हजार से लगते हैं
जहां मधुर ध्वनियों का संगम एक ऐसा संगीत आपके
कानों में पिरोता है कि रोम-रोम खिल उठता है, एक सुकून, शांति में मन का पंछी अनायास
ही गुनगुनाने लगता है. जहां हजारों भिन्न-भिन्न गीत मिलकर एक नया संगीत बनाते हैं.
संगीत का ऐसा संगम दुनियां में और कहीं नहीं मिल सकता है. अनगिनत ध्वनिओं से बना साज़ हमारे मन को छू जाता है,. ऐसा ही एक शाम का सफर माघ मेला में संगम पर ये बता गया कि यहाँ संगम सिर्फ नदियों का नहीं है बल्कि इस जगत की संस्क्रतिओं, परम्पराओं के साथ ही संगीत का भी होता है.
अगर तड़क-भड़क गाने-बजाने से ऊब गये हों, तो
गुजारिए एक शाम संगम तट पर, जहाँ मंद-मंद स्वर हवा में घुल कर बहते हैं. एक ऐसा
संगीत जो ह्रदय में समाकर धडकनों से गुफ्तगू करता है. रोजमर्रा की भागदौड और शोर-शराबे से घायल कान की
परतों पर मरहम लगाता है संगीत यहाँ. कहीं से बांसुरी की सुरीली धुन तो कहीं खनकता
इकतारा, सितार की झनझनाती डोर और किसी भजन की पंक्तियाँ, जब एक साथ घुलते हैं तो
जैसे कानों में रस घोल देते हैं, बस झूमने को मन करता है.
माघ मेले में मेला प्रशासन की ओर से पूरे मेला
क्षेत्र में लाउडस्पीकर लगाये गए हैं, जिनका प्रयोग दिनभर तो खोया-पाया उद्घोषणा
के लिए होता है. मगर शाम होते ही शुरू होता है मधुर भक्ति संगीत. साथ ही मेले में
लगे शिविरों के अपने-अपने स्पीकर हैं. इन सैकड़ों शिविरों का भिन्न-भिन्न संगीत जब
पूरे मेले के संगीत में घुलता है तो फिर संगीत ‘सारेगामा’ के बंधनों से मुक्त होकर
स्वछन्द खिलखिलाता है.
माघ-मेले में प्रवेश करते ही आप के साथ-साथ सफर
करता है एक सुरीला संगीत. जिसकी आहट भी नहीं होती आपको. आप चलते रहिये, संगीत धुन
बदल-बदल कर आपके साथ-साथ चलता रहेगा. इस
संगीत की ये खासियत है कि न तो आपका ध्यान खींचेगा और न हीं आपको अकेला होने देगा.
जहां लाउडस्पीकर अपने नाम के अर्थ बदल देते हैं,
उनकी आवाजें कानों से टकराती नहीं हैं बल्कि न जाने कब कानों से अंतःकरण तक उतर
जाती हैं. और ये अद्भुत ही है कि जहां हजारों लाउडस्पीकर लगे हैं और शोर नहीं है.
मेला प्रशासन के सख्त निर्देशानुसार लाउडस्पीकर एक निश्चित ध्वनि तीव्रता में ही
बजाये जा सकते हैं.
किसी शिविर से ओउम के उच्चारण की ध्वनि, तो किसी
पंडाल से सामूहिक वन्दना, तो कहीं से लोक संगीत की धुन, और कहीं आरती की जय-जयकार,
मन के तारों को झनझना जाती है.
हर पंडाल अपने में विविधता समोए हुए है, हर शिविर से अपनी
एक अनोखी धुन गूंजती है. कहीं प्रवचन में डूबे भक्त, तो कहीं भजनों पर तालियों का
साज देते श्रद्धालु... कहीं आलाप में सुरों से खेलता गायक तो कहीं उँगलियों से
सितार को छेड़ता वादक. अपनी सुध खोकर नाचते-गाते-झूमते स्त्री-पुरुष.... इस सफर में
मन करता है बस यहीं ठहर जाएँ.... फिर आगे बढ़े तो सोचा यहीं.... हर पंडाल के दरवाजे
पर कदम ठिठक से जाते हैं. और ऐसे ही करते-करते न जाने कब संगम पहुँच जाते हैं.
दुनियां में इतनी विविधताओं का संगम सिर्फ यहीं
होता है, और हजारों सुर एक साथ मिल कर बनाते हैं- एक नया सुर. एक नया साज, और एक
नयी धुन गुनगुनाती है. और जब ये सारा संगीत एक धागे में मोतिओं की तरह पिरोया जाता
है तो स्वर्ग संगम पर नज़र आता है.
तो आइये चलें ऊब से सुकून की ओर... शोर शराबे से
मधुरता की ओर... आओ चलें संगम की ओर .!