शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

जो दिल में है, आज कह दो...

आखिर कई करवट बदलती रातों के बाद उसने साहस जुटा कर बोल ही दिया..
"मैं तुमसे प्रेम करता हूँ"
"क्या ??!!!!!!
  लेकिन हमसे ही क्यूँ ?????  लड़की ने तपाक से सवाल दाग दिया ...
लड़का निरुत्तर.... सहम कर चला गया !

दिनभर उलझन में रहा और करीब आधी रात में घर की छत के मुंडेर पे बैठकर चाँद को निहारते हुए अपनी डायरी के एक पन्ने में उसने लिखा-
"मैं उससे प्रेम करता हूँ ..
और यदि कोई पूछे कि उससे प्रेम क्यों ?
तो मेरा सीधा जबाब होगा कि इसकी कोई वजह नहीं है ...
  यदि प्रेम की कोई वजह होती भी हो .... तो मुझे नहीं पता !
इतना जानता हूँ कि मैं प्यार में हूँ .!

अपने प्यार का इज़हार करना किसी जंग लड़ने से कम नहीं है.. मोहब्बत में कभी-कभी दिल के ख्यालात को जाहिर करना खतरा मोल लेने जैसा होता है. इनकार का डर सताता है. खो देने का डर हमारे भीतर हमेशा कुछ न कुछ कुरेदता रहता है. कहीं हमारे इज़हार पर इनकार का कहर न टूट पड़े और सपनों के सारे आशियाने तहस-नहस न हो जाएँ.. फिर फैसला करते हैं कि नहीं रहने दो जैसे चल रहा है चलने दो...
मगर ‘ना’ का अनजान डर कई बार महबूब के दिल में छुपे ‘हाँ’ को भी जाहिर होने का मौका नहीं देता है. और ज़िंदगी एक असमंजस से भरी कसक में बीतने लगती है.. 

प्रेम साहस की मांग करता है,, साहस मन की आवाज सुनने का, मन में उठने वाले तूफानों को समझने का.. और जब आप निश्चित हो जाएँ कि हां आपकी ख्याली दुनियां का बादशाह वही है तो फिर उसे बताने का.. जिसके बिना ज़िंदगी अब तक अधूरी ही रही है. और बताने के साथ-साथ सबसे ज्यादा जरूरी है उसे एहसास दिलाने का कि अगर तुम साथ दो तो हम अपने खालीपन को दुनियां की तमाम खुशियों से भर लेंगे.. भरोसा दिलाने का कि अगर तुम साथ हो तो हम कर सकते हैं वो सब कुछ जिसके बिना हमारा एक होना अब तक मुकम्मल नहीं था. और अगर तुम एक हाथ थामो अपने हाथ में तो मैं दूसरे हाथ से कर लूँगा दुनियां को फतह... साथ मिलकर ज़िंदगी की कठिन राहों को आसान बना लेंगे.

कई बार कहा जाता है कि मोहब्बत का इज़हार शब्दों से नहीं होता., प्रेम जब दीवानगी में होता है तो शब्द प्रयाप्त नहीं होते... एक शायर ने तो लिखा है-
कौन कहता है मोहब्बत की जुबां होती है...
ये हकीकत तो निगाहों से बयाँ  होती  है .!'

सच है. दिल के ख्यालों को बयां करने के लिए हमेशा शब्द काम नहीं आते.. और भारतीय समाज में तो शब्दों से इज़हार जैसे प्रतिबंधित ही है.. प्रेम को बयां करना जैसे अतिशयोक्ति माना जाता है.. मसलन जब आप करते हैं तो उसमे कहने जैसी  कोन  सी बात है, और यही संस्कृति प्रेम के इज़हार पर संकोच का पहरा भी लगाती है.. 
मोहब्बत में हर वक़्त आपको ख्याल रखना पड़ता है कि आप अकेले नहीं हैं, आपसे किसी की ज़िंदगी, किसी की खुशियाँ जुडी हैं. लिहाजा , उसकी परवाह करना भी इस बात का इज़हार करता है कि आप मोहब्बत करते हैं.  

मसलन, अगर कोई आपसे यह नहीं कहे कि आपसे कितनी मोहब्बत करता है, लेकिन दिन-रात वो आपकी खुशी और तरक्की के लिए मेहनत कर रहा है.... अगर कोई है जो आपसे बिना इज़हार किये आपकी हर पल परवाह कर रहा है,,, समझ लीजिए कि ये भी उसके प्रेम के इज़हार का ही एक तरीका है.-- और शायद सबसे दमदार और सबसे खूबसूरत तरीका है. निस्वार्थ प्रेम का ऐसा इज़हार जीवन में बहुत कम मिलता है..  जहां उसकी मोहब्बत ने शब्दों को पीछे छोड़ दिया है, लफ्जों में समेटने के बजाय उसकी ज़िंदगी की दास्ताँ ही उसकी मोहब्बत का इज़हार करने लगती है......

आज इस दिन के बहाने अवसर है शब्दों से परे हकीकत में छुपे उस प्रेम को पहचानने का... और उस पर मोहब्बत का इज़हार कर ज़िंदगी में बसा लेने का ...इससे पहले कि वक़्त अपना रुख बदल दे  और ज़िंदगी उसी की मोहताज़ हो जाये जिसने आपके ख्वाबों में राज किया ... रात भर जगाया...!
इसलिए मौका है आज ,,,,, वरना  यही दिन हर वर्ष आएगा, मुंह चिढ़ाकर एक कसक लिए ---
 और धीरे से कान में फुसफुसायेगा -  '' तुम कितने उल्लू थे, बस इतनी सी बात नहीं कह पाए...'
वरना ज़िंदगी कितनी हसीन होती ...... ख्वाबों जैसी !!!!!


दिल से भेजिए दिमाग को सन्देश...

‘’जो आप करना चाहते हैं, सबसे पहले अपने दिल से उसकी इजाजत लीजिए. और अगर दिल की हरी झंडी मिल जाये तो फिर दिमाग को एक नोटिस जारी करिये... और हर रोज उस नोटिस पर की गई कार्रवाई का विवरण लेते रहिये....दुहराते रहिये –yes I can!!!! और फिर दिमाग शरीर को संचालित कर आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देगा. बस इतना सिंपल सा फॉर्मूला है सक्सैस का...’’
इलाहाबाद के विज्ञान परिषद में शहर भर से आये सेकडों युवाओं को सफलता का मंत्र दे गए देश के मशहूर मोटिवेटर अत्रिशेखर. ‘चिरांगन’ द्वारा आयोजित सेमिनार में कई स्वप्नीली आँखे अपने सपनों की सीढियाँ लेकर विदा हुई. yes I can! मूल मन्त्र पर सफलता की चर्चा में न सिर्फ युवा शामिल थे बल्कि कई वरिष्ठ लोग भी सफलता की कुंजी लेने आये थे.

बताये सफलता के आयाम..
देश के प्रसिद्ध पब्लिक स्पीकर अत्रिशेखर ने छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से जीवन की कठिनाइयों कीई तह तक जाने की भरपूर कोशिश की. आखिर कहाँ कमी रह जाती है, कि हम सफलता के करीब पहुंचकर भी सफलता हमारे हाथों से फिसल जाती है. हमारी मेहनत और लगन एक पल में धाराशाही हो जाती है. और फिर हम उसका शोक मनाने लगते हैं,
quit करना आसान है. जबकि स्थितियों का सामना करते हुए सीखते रहना कठिन है. अत्रिशेखर जी के अनुसार ‘’जब आप अपने लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं, तब आप सफलता की ओर कदम बढ़ा देते हैं, सपने सब देखते हैं, मगर उन्हें पूरा करने के लिए deadline जिसने निर्धारित कर ली, वह सफल होना शुरू हो जायेगा..’’
युवा भ्रमित हो रहा है जिसे सही दिशा देने की सबसे ज्यादा जरुरत है. क्योंकि युवा ही देश का भविष्य हैं.

 इस आयोजन के सहयोगियों में knowledge group, The institute , देशी रसोई, ok next तथा प्रिंट पार्टनर i-next, रेडियो पार्टनर red FM, और online partner के रूप में  Allahabad post शामिल रहे.


‘चिरांगन’ एन.जी.ओ के इस आयोजन में मुख्य अथिति के रूप में सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज के कोर्स कॉर्डिनेटर धनंजय चौपडा ने अत्रिशेखर जी को स्मृति-चिन्ह देकर सम्मानित किया.

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

एक दसक में बदल दी दुनियां.....

 फेसबुक ने आज अपने दस वर्ष पूरे कर लिए. 1.2 बिलियन यूजर्स के साथ सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक 4 फरवरी 2004 को शुरुआत की थी. समर्पित है जन्मदिन उपहार स्वरुप एक चिटठा--- 

dear facebook, 
आज तुम्हारा दसवां जन्मदिन है, यानी आज तुम दस साल की हो गई हो! आज तुम्हें राजकुमार कहूँ या राजकुमारी बड़ा कन्फ्यूज हूँ... खैर मैं इसमें नहीं उलझूंगा. वाकई तुमने छोटी सी उम्र में ही कई अजूबे  कर दिए, जैसे तुम्हारे जनक ने किए हैं. वो भी क्या कमाल का आदमी है ना, 19 साल का एक ऐसा लड़का, जिसके होठों के ऊपर मूंछ तक ठीक से नही पनपी थी, इतनी बड़ी बेवसाईट का निर्माण कर दिया. वैसे तुम्हें बनाने में मार्क जुकरबर्ग के अलावा डस्टिन मोस्कोविच, क्रिस ह्यूग्स और एदुआर्दो सेवेरिन भी शामिल थे, मगर जूनून और जिद मार्क की थी. 


4 फरवरी 2004 को हार्वर्ड के एक छोटे से कमरे जन्म के समय तुम्हारा नाम the facebook था. 2005 में 2 लाख डॉलर में फेसबुक डॉट कॉम का डोमेन खरीदने के साथ ही तुम्हारा नाम बदलकर सिर्फ facebook कर दिया गया. और तब से आज तक दुनियां तुम्हें इसी नाम से जानती है.
dear facebook, 
तुमने इस एक दसक में विश्व भर में कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं तो कुछ सतही तौर पर सामाजिक परिवर्तन किये हैं. खास कर भारत जैसे संस्क्रतिवादी देश में तुमने ऐसे परिवर्तन किये हैं जो न तो अपनाते बन रहे है और ना ही ठुकराते. मसलन मुंह में भरे गरम दूध वाली स्थिति है जो न तो निगलते बनता है और ना ही उगलते... आज भी तुम्हारी जमकर आलोचना होती है, देश के बड़े-बड़े आलोचक तुम्हारे वजूद से भारतीय युवाओं को गर्त में जाता देख रहे हैं, बड़ी-बड़ी बहसें होती हैं कि फेसबुक ने भारतीय नयी पीढ़ी को संस्कारहीन बना दिया है. बच्चों को माता-पिताओं से दूर कर दिया,..इस गंभीर आलोचना को तुम्हारे ही वाल पे पोस्ट किया जाता है. मैं पूछता हूँ समय ही कहाँ है माता-पिताओं के पास बच्चों के लिए... अरे एक तुम ही तो हो जो उनकी हर बात बिना डांटे सुन लेती हो. वरना घर में तो बड़े लोग बच्चों पर रोब ज़माने के लिए ही पैदा हुए हैं. खैर! तुम्हारे इस अभियान के बाद कुछ समझदार परिजनों ने अपने बच्चों के लिए वक़्त निकलना शुरू किया है.

dear facebook, 
दरअसल तुमने लोगों को एक नयी दुनियां दी है, जहां उनका एक पर्सनल घर है, चाहे वास्तविक जिंदगी में सर पर छत हो ना हो. तुम्हारी दुनियां में आते ही सबको एक नए घर की चाबी थमा दी जाती है, जिसमे बिना उसकी इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है.. चाहे वो उसके पिताजी ही क्यों न हों. पहले नॉक करना होगा और वो चाहेगा तो दरवाजा खोलेगा. नहीं तो not now बोल देगा और पिताजी को सुनायी भी नहीं देगा. और यही आज कि पीढ़ी की सबसे बड़ी जरुरत है, जहां उनका एक लोक्ड रूम हो... और अपनी मर्जी के मुताबिक रह सकें. आज हर किसी को अपने पर्सनल सीक्रेट की सिक्यूरिटी चाहिए, जो तुमने आते ही थमा दी. 


dear facebook, 
            सबसे बड़ा काम जो तुमने किया वो ये कि सबके लिए एक अभिव्यक्ति का मंच तैयार किया, जहां जावेद अख्तर भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं और उसी वाल पे एक चाय वाला भी अपनी अटपटी शायरी लिख देता है. अभिव्यक्ति का ये मंच दुनिया को एक कतार में खड़ा करता है.. जहां कोई भी अपनी बात कह सकता है और उसे पढ़ने वाले सिर्फ पसंद कर सकते है, नापसंद नहीं.!
जिसकी कोई नहीं सुनता, उसका तुम्हारे वाल पे स्वागत है. जिसको कोई नहीं पूछता उससे तुम हमेशा पूछती रहती हो- what's on your mind? 

dear facebook,
      गोल दुनियां को जब तुमने सपाट बनाया तो भारत कुछ पहलुओं पर सहम सा गया.. सबसे बडी तकरार रिश्तों में आयी.. रिश्तों की जंजीरें, जिनमे आख़िरी सांस तक जकडन रहती थी, आज एक पल में hii से शुरू हुआ एक रिश्ता आग में जलती हुई रस्सी की तरह ऐंठ खाता हुआ, जिसमे एक पल बहुत कसाव रहता है-इतनी मजबूती कि जीना यहाँ और कह दो तो बस मरना भी यहाँ...., दूसरे पल ही bye में तब्दील होकर राख बन जाता है. तुमने रिश्ते बनाने की इतनी आजादी दे दी कि लोग भूल गए कि रिश्ते होते क्या हैं, इतने विकल्प हैं कि एक ने कुछ कहा तो अगले 255 फ्रेंडलिस्ट में मौजूद हैं, जो आपके रिप्लाई का wait कर रहे हैं. और इस अप्रत्यक्ष बातचीत ने आमने-सामने की मान-मर्यादा टाक पर रख दी है. मसलन आप सामने नहीं हैं तो जो चाहते हैं कह सकते हैं..


......अब तक पैरों में जाने वाले हाथ तुमने सीधे हाथों में मिला दिए हैं.. और ठीक भी है हाथ, हाथों में ही अच्छे लगते हैं. मगर इस बात को आज तक मेरे देश के गुरु जी नहीं समझ पाए थे. और जब तुमने उनके अस्तित्व पर ही ये शर्त लगा दी तो फिर वे मजबूरन खुद भी इसकी वकालत करने लगे...
यही हाथ एक भारत का आम युवा अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा से मिला सकता है.. तो वो चौराहे वाला रामू सीधे अमिताभ बच्चन से यही दोस्ती का हाथ बढाता है. तुमने सारे रिश्ते खत्म करके उन्हें सिर्फ एक डोर में पिरो दिया और वो है 'दोस्ती' की अटूट डोर.....
एकमात्र ऐसी दुनिया जहां हर शख्स एक-दूसरे का दोस्त है..

तो मेरी प्यारी दोस्त तुम्हें तुम्हारे दसवें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ... तुम हजारों साल जियो...!

दिनांक-                                                     तुम्हारा 'दोस्त' 
04 फरवरी 2014                                               -'विनय'