मंगलवार, 4 अगस्त 2015

खुद को रचकर

खुद को रचकर दुनियां को कुछ अपने ढंग से रंगते हैं..
कहीं मटमैली - कहीं रंगोली सी एक इबारत लिखते हैं..
कुछ तो रोशन होंगी रातें, चल आसमान में चमकते हैं..
कुछ तो तककर राहत लेंगे, चल तारों संग टंगते हैं.
अपना क्या है कुछ भी चुन लें,
चल सपनों की वादी चुनते हैं

आवारा हैं कोई धुन लें,
चल बेताबी बुनते हैं..
नज़रों से कुछ दूर तो क्या,
हम सपने बनकर जागते हैं.
हम हैं राही प्यार में कुरबां,
चल कुछ लम्बी दूरी चलते हैं..

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