रात चाँद और मैं !
रे चांद ! क्यों जागते रहते हो सूनी रातों में …. अकेले
जलते रहते हो हल्की आग में , मद्धिम-मद्धिम …
इतनी तपिश कि सिर्फ उजाला हो… कोई झुलसे न।
अरे! जलता तो सूरज भी है , मगर वो अपने साथ इस दुनियां को भी जलाता है।
और तुम , खुद जलते हो और दुनिया को सुलाते हो।
हे चाँद ! तुम मुझे कोई पहरेदार लगते हो …
सारी दुनिया के पहरेदार …
कभी-कभी तुम मुझे वो दिया की ढिबरी लगते हो ,,,,
जिसे मेरी माँ सोने से पहले अक्सर बुझाना भूल जाती थी ….
और वो मासूम सा चिराग रात भर टिम-टिमाता रहता था।
. .
….रे चाँद ! मैं भी कई रातों से तुम्हारे साथ जाग रहा हूँ ,
और मेरा 'हर दिन' सूरज की आग में जल जाता है।
तुम तो कई सदियों से रातभर जागते रहे हो …
'तुम्हारा दिन' कैसा गुजरता है ??????????????
रे चांद ! क्यों जागते रहते हो सूनी रातों में …. अकेले
जलते रहते हो हल्की आग में , मद्धिम-मद्धिम …
इतनी तपिश कि सिर्फ उजाला हो… कोई झुलसे न।
अरे! जलता तो सूरज भी है , मगर वो अपने साथ इस दुनियां को भी जलाता है।
और तुम , खुद जलते हो और दुनिया को सुलाते हो।
हे चाँद ! तुम मुझे कोई पहरेदार लगते हो …
सारी दुनिया के पहरेदार …
कभी-कभी तुम मुझे वो दिया की ढिबरी लगते हो ,,,,
जिसे मेरी माँ सोने से पहले अक्सर बुझाना भूल जाती थी ….
और वो मासूम सा चिराग रात भर टिम-टिमाता रहता था।
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….रे चाँद ! मैं भी कई रातों से तुम्हारे साथ जाग रहा हूँ ,
और मेरा 'हर दिन' सूरज की आग में जल जाता है।
तुम तो कई सदियों से रातभर जागते रहे हो …
'तुम्हारा दिन' कैसा गुजरता है ??????????????
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