शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

एक  बहादुर बच्ची के लिए …
बचपन में यूँ ही खेल -खेल में वह मां से पूछ बैठी थी कि  ''मां ये आसमान इतना छोटा क्यूँ है? '' और तब सबको  हँसी आयी थी उसकी बात पर ……, लेकिन जब उसने जीवन के अर्थ को तलाशना शुरू किया, और हज़ार ठोकरों से गिरकर संभालना शुरू किया तो अपनी क्षमताओं को सही -सही परख पाई  वो.… ।
और आज जब कोई मुश्किल  उसे नही रोक पाई और  सचमुच उड़ान भरने को जी चाहा …
तो उसे बचपन के उसी  सवाल की फिर याद आ गई कि '' ये आसमान इतना छोटा क्यूँ है ?''
…. और इस बार उसने आईने से कहा
'' जो देखनी हो मेरी उड़ान….
तो आसमान से कहो थोडा और ऊंचा  हो जाए.… '' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें