बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

सरेआम पिटते पत्रकार

पटियाला हॉउस कोर्ट परिसर में 15 फरवरी को वकीलों ने कवरेज को गए पत्रकारों के साथ मारपीट की और उन्हें कोर्ट परिसर से बाहर निकाल दिया. मामला जे एन यू मे हुए देशविरोधी कार्यक्रम और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार जे एन यूं के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की पेशी के दौरान हुआ जब कुछ वकीलों और भाजपा नेताओं ने जे एन यू छात्रों पर देश के गद्दार होने का आरोप लगाते हुए हमला बोल दिया. बात यहीं तक नहीं रुकी हमलावरों ने पत्रकारों को भी देशद्रोही घोषित कर दिया और मारपीट शुरू कर दी.
हमला करने वाले कोई अनपढ़ लोग नहीं थे, वकीलों ने इस घटना को अंजाम दिया है. जो कि सबसे बडी चिंता का विषय है. वकील कोर्ट के दरवाजे पर ही खुद जज बनकर सजा देने लग जायेंगे तो देश में न्याय का हश्र क्या होगा? हमारे देश में आतंकवादियों का मामला भी देश के ही वकील लड़ते हैं. तब भी दोनों पक्षों की बात ध्यानपूर्वक सुनी जाती है. कोर्ट के लिए तो आरोपी भी तब तक बराबर है जब तक उस पर अपराध सिद्ध नहीं हो जाता.


कोर्ट परिसर में ऐसी घटनाओं को अंजाम देना न्यायपालिका पर आम जन की विश्वसनीयता पर भी एक सवाल बन गया है. जब दूसरे पक्ष के छात्रों सहित पत्रकारों पर भी हमले होते हैं तो कोई आम आदमी कैसे अपने सुरक्षा की आस लगा सकता है. 
न्यायपालिका को मामला अपने संज्ञान में लेकर सख्त कदम उठाने होंगे. मामला कोर्ट परिसर में हुआ है इसलिए अत्यंत आवश्यक है कि दोषियों को कड़ी सजा देकर आम जन को आश्वस्त करे कि वे कोर्ट से सुरक्षित न्याय की गुहार लगा सकते हैं.


असल में ये हमला देश के लोकतंत्र पर हमला है जहाँ इसके चौथे स्तंभ के विरोधी विचारों पर सरकार हमला करेगी तो पहले से ही हताहत स्तंभ गिरने में वक्त नहीं लगेगा. देशभक्त होने का मतलब कभी भी सरकार समर्थक होना नहीं रहा. हमेशा मीडिया आलोचनात्मक रवैया अपनाती ही है, आपातकाल के दौरान भी मीडिया ने खतरे उठाकर सरकार के विरोध में जमकर लिखा है. लेकिन इस वक्त तो वैसे ही गिने-चुने पत्रकार मुखर होकर लिख-बोल पा रहे हैं और अगर उन पर भी हमला कर देशद्रोही घोषित कर दिया जायेगा तो फिर सब ऐसे देशभक्त पत्रकार बचेंगे जो सरकार के भक्त होंगे.
यह लेख जनसत्ता, हिंदुस्तान, दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित हो चुका है. 

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