शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

तू न रुकना, रुक जाएँगी सारी मुश्किलें..

मंजिलें परछाईं बनकर चल रही हैं
कोशिशें अपनी ये हर पल तक रहीं हैं.
बस दौड़ता चल वक्त कम है, सांस लेने के लिए
खींचता जा तू लकीरें, आने वालों के लिए
मुश्किलें हैं ही नहीं, सब कुछ नया है.
ठोकरें भी हमको देतीं, एक दुआ है
चल चला चल हाथ पकडे
मैं साथ हूँ, अंजाम तक रे
हिम्मतें परखेंगे तेरी, सपने तेरे...
चाहतें होंगी बढाती, कदम तेरे..

तू न रुकना, रुक जाएँगी सारी मुश्किलें..
ठोकरें काबिल नहीं कि पा लें मंजिलें..

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