पूरा देश आक्रोश और विद्रोह की आग से भरा हुआ है. स्व-घोषित देशभक्त सड़कों पर उतरकर देशद्रोहियों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. पुलिस गिरफ्तारियां कर रही है. कोर्ट पेशी को आने वाले आरोपियों को सुरक्षा देने में लाचार है. देशद्रोह के आरोपी खुद को देशभक्त बताने के लिए राष्ट्रवाद की परिभाषाएं लिख रहे हैं. इन सबके बीच सरकार चुप है. सरकार जनता को देशभक्ति के नाम पर लडाकर चुप्पी साधे देख रही है. उसका काम सिर्फ इतना है कि कभी-कभार ये आग मंद पड़ती भी है तो उसमें हाफिज सईद का हाथ होने का सुराग देकर घी डाल देती है. हमें समझना होगा कि हमें अहम सवालों पर सोचने से हमारा ध्यान भटकाने की ये सरकार की सोची-समझी चाल है. हम इधर लड़ मर रहे हैं उधर बैंको के लाखों करोड़ रूपयों के कर्ज डूब गए. बजट सत्र आने वाला है जिसमें बजटों से उम्मीदों पर बातें करने का हमें वक़्त ही नहीं दिया जा रहा.
एन. एस. एस. ओ. की अरसठवीं रिपोर्ट में बेरोजगारी का स्तर बढ़ गया है, लेकिन हमें देश-भक्ति की आग से फुर्सत लेने दी जाए तब तो हम सोचेंगे कि अच्छे दिन कब आयेंगे. हमें सवाल उठाने की समझ ही पैदा नहीं होने दी जा रही. देशभक्ति का सवाल ही इतना अहम बना दिया गया कि इसके आगे सब कुछ तुच्छ है. जरा सोचिए कि अगर इस होड़ में देशभक्ति का सर्टिफिकेट मिल भी गया तो क्या देशभक्त भुखमरी और बेरोजगारी से नहीं मरेंगे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें