भोर के सपने
दुनियाँ में ऐसे बहुत लोग हैं जो जुनून से भरे हैं अपने मन का काम करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. मगर उनके पास पैसे की समस्या इतनी है कि उसके दबाब में कला से दूर चले जाते हैं और जीवन भर बेमन से पेट पालने के लिए वही काम करते रहते हैं.
मेरे आसपास ऐसे कई लोग हैं जिन्हें मैंने अपनी आँखों के सामने अपने ख्वाबों से गद्दारी करते देखा है. उदहारण के लिए कहूँ तो थिएटर में काम करते हुए कई ऐसे लोगों से मिला जो कलाकार के रूप में पूरी ज़िंदगी बिताना चाहते थे. मगर कुछ को उनके परिवार वालों ने तो कुछ को साथवालों ने ऐसा डराया कि नौकरी के बिना जीना मुश्किल होगा और वे बिचारे बेमन से नौकरी पाने की होड में लग गए. सालों लग गए क्योंकि उनका मन था ही नहीं नौकरी करने में, तो ज़िंदगी भी उन्हें जानबूझकर असफल बनाती रही कि अब लौटें कम से कम अब खुद को पहचानकर लौट लें, लेकिन खुद को पहचानने के बीच में दूसरों के दबाब की चादर इतनी घनी थी कि वे पहचान ही नहीं पाए.
हालाँकि वे खुद से हमेशा कहते रहे कि एक बार नौकरी मिल जाए फिर थिएटर करता ही रहूँगा, या कुछ दिन काम मिल जाए बस फिर घर वालों को संतुष्ट कर खुद थिएटर में लग जाऊंगा. लेकिन सच्चाई मेरे सामने है कि वे लोग एक बार जाने के बाद कभी नहीं लौट पाए और उस दर्द को सीने में दबाये जीते रहे. काम मिला तो शादी हो गयी फिर बच्चे और उनका खर्चा. ज़िंदगी इतना वक़्त कहाँ देती है कि फिर से सोचा जाए.
हालाँकि वे खुद से हमेशा कहते रहे कि एक बार नौकरी मिल जाए फिर थिएटर करता ही रहूँगा, या कुछ दिन काम मिल जाए बस फिर घर वालों को संतुष्ट कर खुद थिएटर में लग जाऊंगा. लेकिन सच्चाई मेरे सामने है कि वे लोग एक बार जाने के बाद कभी नहीं लौट पाए और उस दर्द को सीने में दबाये जीते रहे. काम मिला तो शादी हो गयी फिर बच्चे और उनका खर्चा. ज़िंदगी इतना वक़्त कहाँ देती है कि फिर से सोचा जाए.
मैं भी कमोबेश इसी राह पर हूँ और उन सबकी तरह खुद से भी एक वादा कर रहा हूँ कि बस कुछ दिन काम करने के बाद थियेटर में लौटूंगा. लेकिन मैं भी द्र हुआ हूँ कि मेरे सपनों का भी हश्र उन्हीं की तरह न हो. इसलिए मैंने एक और सपना देखा है.
मैं ऐसे लोगों को सरंक्षण दूँगा. अपनी कमाई में से इनके रहने खाने पीने का बंदोबस्त करूँगा और थियेटर के उनके सपनों को सींचूंगा. होगा ये कि उनके साथ मैं भी लगा रहूँगा.
हम थियेटर को एक अलग राह पर ले जायेंगे. उसे सफल मुकाम देंगे. मैंने सोचा है कि उन सपनों को सींचेंगे जिन्हें कतरने के लिए कैंचिया वहाँ नहीं पहुंची है. कम उम्र के बच्चों को उनके सपनों के मुताबिक भूमिका देकर थियेटर को जीवन में तब्दील कर देंगे.
हम उनसे लिखवायेंगे कि उन्हें भविष्य में क्या बनना है और उसी के मुताबिक भूमिकाएं तय करके नाटक लिखे जायेंगे और उनमे उनकी मनचाही भूमिका दी जायेगी.
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