गुरुवार, 3 मार्च 2016

बढते नाबालिग अपराधी

नागपुर में एक स्कूली छात्रा के साथ हुए दुष्कर्म में शामिल पांच आरोपियों में चार नाबालिग हैं. इस मामले ने एकबार फिर हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमारे नौनिहाल किस ओर जा रहे हैं. 
हाल ही में किशोर कानून में संशोधन कर उम्र कम कर दी गयी है लेकिन मामलों में कोई कमी नहीं आई है. आंकड़ों के मुताबिक पचास फीसदी से ज्यादा दुष्कर्मों के आरोपी नाबालिग हैं. पिछले दिनों दिल्ली के कडकडडूमा कोर्ट में सरेआम तीन नाबालिगों ने एक कैदी की हत्या कर दी. 
सवाल ये है कि किशोर की उम्र घटाने से अपराधों में कमी नहीं आ रही है. क्या बच्चों को इस कानून के बदलाव के बारे में पता भी है कि सिर्फ हमने आपस में परिचर्चा कर लागू कर लिया है.
अधिकतर अपराधी कमजोर तबके से हैं, जिन्हें कानून के डर से ज्यादा पेट के लिए संघर्ष करना जरूरी हो जाता है. मजदूरी और भीख मांगने से लेकर तमाम अपराधी गिरोह भी इन बच्चों का दुरूपयोग करते हैं. सरकार कानून बनाकर इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर लेती है. कभी ये समझने की कोशिश नहीं की जाती कि आखिर नौनिहाल क्यों इन अपराधों में संलिप्त हो रहे हैं. क्या उन्हें अपराध करने से रोका जा सकता है. जुर्म की दुनियाँ से इन्हें कैसे निकाला जा सकता है.
अपराध की उम्र घटा देने से सरकार एक बार उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज देगी. लेकिन जेल से निकलने के बाद वे कहाँ जायेंगे. बहुत संभावना है कि वे और बड़े अपराधी बनकर बाहर निकलेगे.


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