शनिवार, 5 मार्च 2016

हरा हरा के खुद तो नहीं हार जाओगी ज़िंदगी

कुछ दिनों से तुम बहुत शांत हो गयी हो. ज़िंदगी तुम्हरी चुप्पियाँ मुझे अच्छी नहीं लगतीं. मुझे हरा के तुम खुद तो नहीं हार गयी हो ज़िंदगी. तुमने भी इतने बार हराया है कि तुम्हें भी कहीं ये तो नहीं लग रहा कि अब और कितना? एहसास तो जरुर होता ही होगा कि जीत के इतने करीब ले जाकर हराया है तुमने. और एक बार नहीं कई कई बार जीत हाथों में देकर फिसलन पैदा की हैं तुमने. अब तो तुम्हें भी लगने लगा होगा कि हो क्या रहा है.


मेरी हार का तुम रंज न करो. तुम्हें पता है असल हार तब होती है जब मैं खुद मान लूं कि मै हार गया. जीत और हार खुद से तय होती है किसी और के बताने से नहीं. अभी तो मैंने अपने परिणामों में जीत ही हासिल की है. मेरे लिए ये हर हार एक जीत है. हर सफर में मैं कुछ कदम आगे बढ़ ही रहा हूँ और ठोकर खा रहा हूँ.

ठोकरों की एक गजब की बात है कि हमेशा तुम्हें आगे ही फेंकती हैं. और इसीलिए मैं थोडा थोडा ही सही आगे बढ़ता ही जा रहा हूँ. इसके साथ ही मैं बार बार गिरने की वजह से संभालना भी सीखता जा रहा हूँ.

सफलता दिल में होती है. खुद का सर्वश्रेष्ट करने की सफलता और उससे संतुष्ट हो जाने की सफलता. 

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