गुरुवार, 17 मार्च 2016

हिंसक होते प्रदर्शन

देहरादून में विरोध प्रदर्शन के दौरान बी जे पी विधायक ने बेजुबान पशु पर इस कदर अपना आक्रोश उतारा कि उसकी टांग टूट गयी. खून से लतपथ पशु किसका विरोधी है. क्या हममें थोड़ी भी संवेदनशीलता नहीं बची है. विरोध के नाम पर इतने उग्र हैं कि किसी की जान भी लेने को उतारू हो जाते हैं.
देश में विरोध प्रदर्शन खतरनाक होते जा रहे हैं. अभी कुछ ही दिन पहले जाट आरक्षण के दौरान ऐसी आक्रामकता दिखी थी जिससे हरियाणा अभी भी नहीं उबर पाया है. तोड़ फोड़ में लाखों का नुकसान ही नहीं कई लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ा. हाल के विरोध प्रदर्शनों को शक्ति प्रदर्शनों में तब्दील होते देर नहीं लगती। प्रदर्शन सहजता से अपनी मांग उठाने या विरोध करने का एक संयमित तरीका होता है.
ऐसे प्रदर्शनों में पहले पुलिस की लाठियों की खबरे ही आती थी लेकिन अब प्रदर्शनकारी हिंसक होते जा रहे हैं. हमें तय करना होगा कि हम विरोध करने निकले हैं या वार करने। गुस्सा इतना रहता है कि सड़क पर आम आदमी की हालत सकते में रहती है. किसी भी वक़्त उग्र भीड़ हमलावर हो सकती है. प्रदर्शन करने वाले अपना हक़ लेकर ही लौटने का प्रण लेकर सड़कों पर उतरते हैं. प्रदर्शन अब प्रदर्शन कम खूनी क्रांति ज्यादा लगते हैं. 

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