सुप्रीम कोर्ट ने कॉल ड्रॉप मामले में हाई कोर्ट के आदेश को बनाए रखा है. जिसमें कहा गया था कि यदि कोई भी कॉल बीच में कंपनियों की असुविधा से कटेगी तो उपभोक्ताओं को कंपनिया हर्जाना देंगीं. सच्चाई भी है कि अगर कॉल ड्रॉप होने में गलती कंपनी की है तो इसका खामियाजा उपभोक्ता क्यों भुगतेगा. उपभोक्ता असुविधा तो भुगत ही रहा है कम से कम खर्चा तो कम्पनियाँ उठायें. कई बार कॉल ड्रॉप होने के बाद ऐसे मतभेद पैदा हो जाते हैं कि कॉल करने वाला व्यक्ति समझने लगता है कि सामने वाले ने जानबूझ कर कॉल कट कर दिया है और अक्सर दुबारा कॉल करने की जहमत नहीं उठाई जाती. कॉल ड्रॉप से संवाद में निरंतरता भी टूटती है सो अलग. कॉल ड्रॉप ज्यादातर नेटवर्क में बाधा की वजह से भी होती है, इसलिए उम्मीद है कि हर्जाने के बाद कम्पनियाँ अपनी नेटवर्क प्रणाली सुधारने के लिए प्रयास करेंगी. हर्जाने के खिलाफ इक्कीस कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मानने से इंकार कर दिया. निश्चित रूप से यह फैसला उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद रहेगा.
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