मुजफ्फरनगर दंगों पर आई जस्टिस विष्णु सहाय की रिपोर्ट में बेशक सपा सरकार साफ़ बच गयी है लेकिन रिपोर्ट कई अहम सवाल छोड़ गयी है. क्या सिर्फ एक एस एस पी और इन्स्पेक्टर ही पूरे दंगे के दोषी हैं. जिन नेताओं ने भडकाऊ भाषण दिए, जिन्होंने हमले कर घर लूटे उनका क्या? जिनके इशारे पर सोशल मीडिया को दंगे को बढ़ा चढाकर व झूठी अफवाह फ़ैलाने के लिए प्रयोग किया गया. व्हाट्स एप पर तालिबान के वीडियो को दंगों से जोड़कर भेजा गया. क्या इसका ठीकरा सिर्फ सोशल मीडिया के दुरूपयोग पर ही फोड़ा जा सकता है. इतनी भीड़ को नियंत्रित न करने के लिए स्थानीय पुलिस को दोषी बता दिया गया लेकिन उनका क्या जिनकी साजिश से भीड़ इकठ्ठा हुई और उनके भडकाने से बर्बर होती गयी. और क्या ये हो सकता है कि पुलिस के उच्चस्तरीय अधिकारी और उनके आदेश इसमें शामिल नहीं थे. प्रशासन को दोषी बताकर पूरी राजनीती साफ़ बच गयी. सभी पार्टियों के नेता जिन्होंने आग लगायी बेदाग हो गए क्योंकि आग न बुझाने के आरोप में पुलिस को सजा मिल गयी.
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